Hindi, asked by sana1756, 3 months ago

'वृक्षारोपण ' विषय पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए

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Answers

Answered by pankajshrivastava589
7

Answer:

वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है। वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना इसका प्रयोजन करना है। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना। मानव के जीवन को सुखी, सम्रद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का अपना विशेष महत्व है। मानव सभ्यता का उदय तथा इसका आरंभिक आश्रय भी प्रकृति अर्थात वन व्रक्ष ही रहे हैं। मानव को प्रारम्भ से प्रकृति द्वारा जो कुछ प्राप्त होता रहा है। उसे निरन्तर प्राप्त करते रहने के लिए वृक्षारोपण अती आवश्यक है।

मानव सभ्यता के उदय के आरंभिक समय में वह वनों में वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था। वह (मानव) वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर या उसकी डालियों को हथियार के रूप में प्रयोग करके पशुओं को मारकर अपना पेट भरा करता था। वृक्षों की छाल की वस्त्रों के रूप में प्रयोग करता था। यहाँ तक कि ग्रन्थ आदि लिखने के लिए जिस सामग्री का प्रयोग किया जाता था। वे भोज–पत्र अर्थात विशेष वृक्षों के पत्ते ही थे। वृक्ष वातावरण को शुद्ध व स्वच्छ बनाते है। इनकी जड़ें भूमि के कटाव को रोकती है। वृक्षों के पत्ते भूमि पर गिरकर सड़ जाते हैं। तथा ये मिट्टी में मिलकर खाद बन जाते है। और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते है।

Explanation:

हमारे देश भारत में वृक्षारोपण के लिए कई संस्थाएं, पंचायती राज संस्थाएं, राज्य वन विभाग, पंजीकृत संस्था, कई समितिया ये सब वृक्षारोपण के कार्य कराती हैं कुछ संस्थाओं तो वृक्ष को गोद लेने की परंपरा कायम कर रही है, शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी वृक्षारोपण को भी स्थान दिया गया है, पेड़ लगाने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए आज हमें ए.के. जोन्स की तरह ही वृक्षारोपण का संकल्प लेने की आवश्यकता है।

उपसंहार: आज हमारे देशवासी वनों तथा वृक्षों की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार कर रहे हैं वन महोत्सव हमारे राष्ट्र की अनिवार्य आवश्यकता है, देश की समृद्धि में हमारे वृक्ष का भी महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए इस राष्ट के हर नागरिक को अपने लिए और अपने राष्ट्र के लिए वृक्षारोपण करना बहुत जरूरी है।

Answered by anushkakadam027
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Answer:

वृक्षारोपण का सामान्य एवं विशेष सभी का अर्थ है- वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना । जिससे प्रकृति का सन्तुलन बना रहे । वन-सम्पदा के रूप में प्रकृति से हमें जो कुछ भी प्राप्त होता आ रहा है, वह नियमपूर्वक हमेशा आगे भी प्राप्त होता रहे ताकि हमारे समाज-जीवन का सन्तुलन बना रहे ।

मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी है । उसका जीवन सुखी, समृद्ध एवं सन्तुलित रह सके,सांस्कृतिक, सामाजिक एवं व्यापक मानवीय दृष्टि से इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है । इस कारण भी वृक्षारोपण करना एक प्रकार का सहज सांस्कृतिक दायित्व स्वीकार किया गया है ।

वृक्षारोपण मानव समाज का सास्कृतिक दायित्व है । मानव सभ्यता का उदय और आरम्भिक आश्रय प्रकृति यानि वन-वृक्ष ही रहे है । उसकी सभ्यता-संस्कृति के आरम्भिक विकास का पहला चरण भी वन-वृक्षो की सघन छाया में ही उठाया गया ।

साहित्य-कला का सृजन और विकास ही वनालियों की सघन छाया और प्रकृति की गोद में ही सम्भव हो सका, यह एक पुरातत्व एवं इतिहास सिद्ध बात है । आरम्भ में मनुष्य वनो में, वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था ।

वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर, या उसकी डालियों को हथियार की तरह प्रयोग में लाकर उनसे शिकार करके अपना पेट भरा करता था, बाद में बचे-कुचे फल और उनकी गुठलियों को दुबारा उगते देखकर ही मानव ने खेती-बाड़ी करने की प्रेरणा और सीख प्राप्त की ।

वृक्षों की छाल का ही सदियों तक आदि मानव वरत्र रूप मे प्रयोग करता रहा, यद्यपि बाद में वन में रहकर तपस्या करने वालों, वनवासिया के लिए ही वे रह गए थे । आरम्भिक वैदिक ऋचाओं की रचना या दर्शन में पथ लिखने के लिए कागज के बजाय जिस सामग्री क्य प्रयोग किया गया वे भोजपत्र भी विशेष वृक्षों के पत्ते थे । संस्कृति की धरोहर माने जाने वाले कई ग्रन्थों की भोजपत्रो पर लिखी गई पाण्डुलिपियाँ आज भी कहीं-कहीं उपलब्ध हैं ।

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