'वृक्ष: धरती की शोभा' पर स्वरचित कविता 12 से 15 पंक्तियाँ (please)
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द्रुमों को प्यार करता हूँ
प्रकृति के पुत्र ये
माँ पर सभी कुछ छोड़ देते हैं
न अपनी ओर से कुछ भी कभी कहते
प्रकृति जिस भाँति रखना चाहती
उस भाँति ये रहते
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वृक्ष से ही तो
है हमारा जीवन।
इसलिए तो वृक्ष कहलाए
धरती की शोभा!
चिड़ियों को नीड़ दे,
तो मनुष्य को ऑक्सीजन,
जानवरों को छाया दे,
और सभी जीवों को फल!
यह वृक्ष है परोपकारी,
जो मांगे कभी न कुछ;
पर दे हमें चीज़ें जरूरी,
जिनके बिना जीवन नहीं है कुछ!
जिस कागज़ पर लिखते हम,
जिस मेज़ पर रखते समान हम,
वे सभी तो बने
इस परोपकारी वृक्ष के कारण!
चलो ले एक संकल्प आज,
न काटेंगें पेड़ हम,
जब बहुत जरूरत पड़े,
तब काटेंगें तो, पर उगाएंगे ज्यादा!
This is fully written by me... I hope you'll like it! :)
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