विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो! Explanation
Answers
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!
संदर्भ ► यह कविता ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित “उत्साह” नामक कविता की हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बादल के सौंदर्य और महिमा का वर्णन किया है, उनके बरसने का आह्वान किया है।
भावार्थ ► कवि बादलों को संसार का नया जीवन देने का आह्वान करते हुए कहता है कि तुम गरज कर मूसलाधार घनघोर वर्षा करो, जिससे यह जगत शीतल और तृप्त हो जाए तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो और समस्त जगत को जल देकर नया जीवन प्रदान करते हो। तुम्हारे अंदर वज्रपात करने की असीम शक्ति समाई हुई है। कवि बादलों का आह्वान करते हुए कहता है कि तपती गर्मी से बेहाल लोगों का मन कहीं नहीं लग रहा है, वह गर्मी से व्याकुल हैं। ऐसे में जब चारों तरफ बादल घिर आए हैं तो हे बादल! तुम बरस जाओ और इस तपती धरती को अपने शीतल जल से तृप्त कर दो।
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