Hindi, asked by raunakverma7292, 1 month ago

विकसता सुख का नवल प्रभात,
एक परदा यह झीना नील
छिपाये है जिसमें सुख गात।
जिसे
तुम
समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल,
ईश का वह रहस्य वरदान
कभी मत इसको जाओ भूल।
प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए।​

Answers

Answered by py5024131
2

Answer:

दुःख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात,

एक परदा यह झीना नील छिपाये है जिसमें सुख गात।

जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल---

ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल।

विषमता की पीड़ा से व्यस्त हो रहा स्पंदित विश्व महान,

यही दुःख-सुख, विकास का सत्य यही भूमा का मधुमय दान।

नित्य समरसता का अधिकार उमड़ता कारण-जलधि समान,

व्यथा से नीली लहरों बीच बिखरते सुख-मणिगण द्युतिमान।"

लगे कहने मनु सहित विषाद---"मधुर मारुत-से ये उच्छ्वास

अधिक उत्साह तरंग अबाध उठाते मानस में सविलास।

किंतु जीवन कितना निरुपाय! लिया है देख, नहीं संदेह,

निराशा है जिसका परिणाम, सफलता का वह कल्पित गेह।"

कहा आगंतुक ने सस्नेह-"अरे, तुम इतने हुए अधीर!

हार बैठे जीवन का दाँव, जीतते मर कर जिसको वीर।

तप नहीं केवल जीवन-सत्य करुण यह क्षणिक दीन अवसाद,

तरल आकांक्षा से है भरा---सो रहा आशा का आह्लाद।

प्रकृति के यौवन का शृंगार करेंगे कभी न बासी फूल,

मिलेंगे वे जाकर अति शीघ्र आह उत्सुक है उनकी धूल।

पुरातनता का यह निर्भीक सहन करती न प्रकृति पल एक,

नित्य नूतनता का आनंद किये है परिवर्तन में टेक।

युगों की चट्टानों पर सृष्टि डाल पद चिह्न चली गंभीर,

देव, गंधर्व, असुर की पंक्ति अनुसरण करती उसे अघीर

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