Hindi, asked by manjuvinod178, 3 months ago

वाख
भयाणार , संचमार सापि समुद्र
रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जो में उठती रह रह एक, घर जाने की चाह है धेरे।।​

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the poetess of this poem is laladyad

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