वाल्मीकी रामायण बाल्यकाण्ड प्रथम सर्ग का सारांश लिखकर रामायण के महत्व को समझाइए
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देवर्षि नारद कहते हैं- वाल्मीकि जी! भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र हैं मरीचि। मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य और सूर्य से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु के वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघु, रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए। उन राजा दशरथ से रावण आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात भगवान विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्री रामचन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिये थे, जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ।
श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही समान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालने वाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्री रामचन्द्रजी ने वहाँ जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा पायी और ताड़का नाम वाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञ विघातक राक्षस सुबाहु को दल-बल सहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश का धनुष-यज्ञ देखने के लिये गये।
अपनी माता अहिल्या के उद्धार की वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए शतानन्द जी ने निमित्त-कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का[3] वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्री रामचन्द्र जी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदनन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को, जिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्री रामचन्द्र जी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणि ग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश-कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया।
राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और माण्डवी। इनमें माण्डवी के साथ भरत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। तदनन्तर राजा जनक से भलीभाँति पूजित हो श्री रामचन्द्र जी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। मार्ग में जमदग्निनन्दन परशुराम को जीत कर वे अयोध्या पहुँचे। वहाँ जाने पर भरत और शत्रुघ्न अपने मामा राजा युधाजित की राजधानी को चले गये।