Social Sciences, asked by pappusoni05051980, 3 months ago

विलय नीति का सिद्धांत क्या था​

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Answered by Anonymous
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Answer:

व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति (अँग्रेजी: The Doctrine of Lapse, 1848-1856)।पैतृक वारिस के न होने की स्थिति में सर्वोच्च सत्ता कंपनी के द्वारा अपने अधीनस्थ क्षेत्रों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की नीति व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति कहलाती है।

Explanation:

यह परमसत्ता के सिद्धान्त का उपसिद्धांत था, जिसके द्वारा ग्रेट ब्रिटेन ने भारतीय उपमहाद्वीप के शासक के रूप में अधीनस्थ भारतीय राज्यों के संचालन तथा उनकी उत्तराधिकार के व्यवस्थापन का दावा किया।

यह विस्तारवादी नीति थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। उदाहरण के लिये, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय नरेशों में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। 1857 में हुए ब्रितानी शासन के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध को जन्म देने में इस नीति की महत्वपूर्ण भूमिका थी।डलहौजी ने इस सिद्धान्त पर कार्य किया कि जिस प्रकार भी संभव हो सके,ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तारराज्यों का विलय

स्वाभाविक या दत्तक न होने के कारण सतारा , जैतपुर-संभलपुर, बघाट , उदयपुर , झाँसी , नागपुर , करौली और अवध राज्यों का विलय कर दिया गया।

व्यपगत सिद्धान्त के अनुसार विलय किया गया प्रथम राज्य सतारा था। सतारा के राजा अप्पा साहब ने अपनी मृत्यु के कुछ समय पूर्व ईस्ट इण्डिया कम्पनी की अनुमति के बिना एक 'दत्तक पुत्र' बना लिया था। लॉर्ड डलहौज़ी ने इसे आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय कर लिया। 'कामन्स सभा' में जोसेफ़ ह्नूम ने इस विलय को 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' की संज्ञा दी थी। इसी प्रकार संभलपुर के राजा नारायण सिंह, झांसी के राजा गंगाधर राव और नागपुर के राजा रघुजी तृतीय के राज्यों का विलय क्रमशः 1849 ई., 1853 ई. एवं 1854 ई. में उनके पुत्र या उत्तराधिकारी के अभाव में किया गया। उन्हें दत्तक पुत्र की अनुमति नहीं दी गयी। किया जाए

परिणाम : इस सिद्धान्त का अधिकार क्षेत्र आश्रित हिन्दू राज्यों तक सीमित था, इस कारण इन विलयों से इन राज्यों के राजाओं और उनके अभिजात वर्ग में आशंका और रोष पैदा हो गया। आमतौर पर माना जाता है, कि 1857 के भारतीय बगावत के शुरू होने और फैलाने के पीछे जो असंतोष था, उसे भड़काने में इस सिद्धान्त का भी योगदान था।

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