विनोबा भावे जी, (विनायक नही पाया
जन्म: ११ सितबर १८९५ मृत्युवाच
१९८२ परिचय. विनोबा भावे काय
विनायक नरहरीभाव था। आवम्बवत सपा
सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा
गांधी विचारक थे। प्रमुख कृतियाँ
(गीता का मराठी में अनुवाद) गाल पर
शिक्षा पर विचार आदि कुछ प्रमुख रचना
महात्मा गांधीजी
परम पूज्य बापूजी,
एक साल पहले अस्वास्थ्य के कारण आश्रम से बाहर गया था।
वह तय हुआ था कि दो-तीन मास बाई रहकर आश्रम लौट जाऊंगा।
पर एक साल बीत गया, फिर भी मेरा कोई ठिकाना नहीं ! पर मुझे
कबूल करना चाहिए कि इस बारे में सारा दोष मेरा ही है। वैसे मामा
(फडके) को मैंने एक-दो पत्र लिखे थे। आश्रम ने मेरे हृदय में खास
स्थान प्राप्त कर लिया है, इतना ही नहीं, अपितु मेरा जन्म ही आश्रम
के लिए है, ऐसी भेरी श्रद्धा बन गई है । तो फिर प्रश्न उठता है कि मैं
एक वर्ष बाहर क्यों रहा?
जब मैं दस वर्ष का था तभी मैंने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते
हुए देशसेवा करने का व्रत लिया था। उसके बाद मैं हाईस्कूल में
दाखिल हुआ । उस समय मुझे भागवत गीता के अध्ययन का शौक
लगा । पर मेरे पिता जी ने दूसरी भाषा के तौर पर फ्रेंच लेने की आज्ञा
दी । तो भी गीता पर का मेरा प्रम कम नहीं हुआ था और तभी से मैंने
घर पर ही खुद-ब-खुद संस्कृत का अभ्यास शुरू कर दिया था। मैं
आपकी आज्ञा लेकर आश्रम में दाखिल हुआ पर उसी समय वेदांत का
अभ्यास करने का अच्छा मौका हाथ लगा । वाई में नारायण शास्त्री
मराठे नामक एक आजन्म ब्रहमचारी विदवान विद्यार्थियों को वेदांत
तथा दूसरे शास्त्र सिखाने का काम करते हैं। उनके पास उपनिषदों का
अध्ययन करने का लोभ मुझे हुआ । इस लोभ के कारण वाई में मैं
ज्यादा समय रह गया । इतने समय में मैंने क्या-क्या किया, यह
लिखता हूँ।
जन्म: २ अक्टूबर १८६१ मृत्यु ३० जना
१९४८ परिचय: गांधीजी का सार
मोहनदास करमचंद गाधी था। आप मार
स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख राजनीतिक र
आध्यात्मिक नेता थे।
प्रमुख कृतियाँ : सत्य के साथ मेरे प्रयोग
(आत्मकथा) हिंद स्वराज्य था इंडियन होमका
इनके अतिरिक्त लगभग प्रत्येक दिन अमेय
व्यक्तियों और समाचार पत्रों के लिए लेखन कर
यहाँ प्रथम पत्र में विनोबा भावे जी का
निश्चय, देशसेवा व्रत, परिश्रम, अनुशासन
एवं गांधीजी के प्रति समर्पण एवं त्य
परिलक्षित होती है।
जिस लोभ के ग्वातिर मैं इतने दिनों आश्रम से बाहर रहा. मेरा वहइस इस परिच्छेद में से सर्वनाम बताइए
Answers
Answer:
b>गजल<b>
-माणिक वर्मा
<b>परिचय<b>
जन्म : १९३८, उज्जैन (म.प्र.) परिचय : हास्य-व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर माणिक वर्मा जी वाचिक परंपरा में प्रमुख स्थान रखते हैं । आपके व्यंग्य बड़े ही धारदार होते हैं। आपकी गजलें बहुत ही प्रेरणादायी होती हैं। <b>प्रमुख<b><b>कृतियाँ:<b> ‘गजल मेरी इबादत है', 'आखिरी पत्ता' (गजल संग्रह), 'आदमी और बिजली का खंभा', 'महाभारत अभी जारी है', 'मुल्क के मालिकों जवाब दो' आदि ।
<b>पदय<b> <b>संबंधी<b>
प्रस्तुत गजल के अधिकांश शेरों में वर्मा जी ने हम सबको जीवन में निरंतर अच्छे कर्म करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है ।
अपने रूप-रंग से सुंदर दिखने के बजाय अपने कर्मों से सुंदर दिखना आवश्यक है।
आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो, शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो।
चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो, और अगर बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो ।
सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं, आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो ।
जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं, पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन, जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो ।
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ, वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते, गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली, तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।
कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में, मैं जिसे देखू उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।
('गजल मेरी इबादत है' से)