वे :. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर, दिए गए प्रश्नो के उत्तर के सही विकल्प छाँटकर खिए- रामकृष्ण परमहंस का जन्म बंगाल में हुआ था । यह ज्यादा विद्वान तो नहीं थे, पर बड़े समझदार थे । बचपन से ही बहुत पवित्र विचारों के थे | जैसे-जैसे वह बड़े हुए, वैसे-वैसे समझने लगे कि ईश्वर हर वक्त उनके पास | रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के एक छोटे से मंदिर में पुजारी और विवेकानंद के गुरु भी थे । बड़ा ही सादा जीवन बिताते थे | वे सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों की इज्जत करते थे | कई बार तो वह अछूतों के साथ खाना भी खाते थे | उनका विश्वास था कि सभी धर्म एक ही सत्य की शिक्षा देते हैं। भारत के प्राचीन ऋषियों की तरह वह भी कहा करते थे कि, “ ईश्वर एक है, केवल विद्वान लोग उसका नाम अलग- अलग रख देते हैं। वह जाति के ब्राह्मण थे, लेकिन समय-समय पर मुसलमान और ईसाई कि तरह भी रहे थे । इन धर्मों की बातें भी वह अच्छी तरह समझते थे | उनका जीवन अच्छा और उनकी बातें भी इतनी अच्छी थी कि वह संत माने जाने लगे। उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनिए ।
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रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।
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श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन में यह स्थापित किया कि सभी धर्म सच्चें हैं और ईश्वर का अस्तित्व हैं। जब एक संशयी किन्तु जिज्ञासु युवक नरेन्द्रनाथ दत्त ने श्री रामकृष्ण से प्रश्न किया ” महोदय , क्या आपने ईश्वर को देखा है ?” तो उन्होंने तुरंत उत्तर दिया ,हाँ ! मैं उन्हें उतना ही स्पष्ट देख सकता हूँ जैसे अभी मैं तुम्हें देख रहा हूँ। बल्कि इससे भी कहीं अधिक सुस्पष्ट। इसके बाद श्री रामकृष्ण ने नरेन्द्रनाथ को ईश्वर के दर्शन करवाये। आगे चलकर नरेन्द्रनाथ विश्व के महान धर्म प्रचारक स्वामी विवेकनन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए।