वानप्रस्थी के चार कर्तव्य लिखिए?
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परिव्राजक का काम है चलते रहना। रुके नहीं, लक्ष्य की ओर बराबर चलता रहे, एक सीमा में न बँधे, जन-जन तक अपने अपनत्व और पुरुषार्थ को फैलाए। जो परिव्राजक लोकमंगल के लिए संकीणर्ता के सीमा बन्धन तोड़कर गतिशील नहीं होता, सुख-सुविधा छोड़कर तपस्वी जीवन नहीं अपनाता, वह पाप का भागीदार होता है।
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परिव्राजक का काम है चलते रहना। रुके नहीं, लक्ष्य की ओर बराबर चलता रहे, एक सीमा में न बँधे, जन-जन तक अपने अपनत्व और पुरुषार्थ को फैलाए। जो परिव्राजक लोकमंगल के लिए संकीणर्ता के सीमा बन्धन तोड़कर गतिशील नहीं होता, सुख-सुविधा छोड़कर तपस्वी जीवन नहीं अपनाता, वह पाप का भागीदार होता है।
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