वानरः कसमै जमबुफलानि ददाति सम ?
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एकस्मिन् नदीतीरे एकः जम्बूवृक्षः आसीत्। तस्मिन् एकः वानरः प्रतिवसति स्म। सः नित्यं जम्बूफलानि खादति स्म। कश्चित् मकरः तस्य मित्रम् आसीत्। सः वानरः प्रतिदिनं तस्मै जम्बूफलानि ददाति स्म। अतः सः मकरः तस्य वानरस्य प्रिय मित्रम् अभवत्।
अनुवाद :
एक नदी के किनारे एक जामुन का पेड़ था। उस पर एक वानर रहा करता था। वह प्रतिदिन जामुन के फल खाया करता था। कोई मगरमच्छ उसका मित्र था। वह बन्दर प्रतिदिन उसको जामुन के फल दिया करता था। अत: वह मगरमच्छ उस बन्दर का प्रिय मित्र बन गया।
एकदा मकरः कानिचित् जम्बूफलानि स्वपत्न्यै अयच्छत्। तानि खादित्वा तस्य पत्नी अचिन्तयत्, “अहो! सः वानरः प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादति। अतः नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति” इति। सा स्वपतिम् अवदत्, “भो प्रतिदिनं मधुराणि जम्बूफलानि खादित्वा त्वं वानरमित्रस्य हृदयं कियत् मधुरं स्यात्? तस्य हृदयं खादित्वा मम हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति। तत् यदि माम् जीवितां दुष्टम् इच्छसि तर्हि आनय शीघ्रं तस्य वानरस्य हृदयम्।”
मकरः स्वपत्नी बहुविधैः निवारितवान्। परं सा दृढ़निश्चया आसीत्। विवशः मकरः स्वमित्रं वानरं प्रति गत्वा अवदत, “मित्र प्रतिदिनम् अहम् एव अन्नं आगच्छामि। अद्य त्वं मम गृहमागच्छ।”
वानरः प्रत्युवाच, “त्वं तु जले वससि, कथम् अहं तत्र गन्तुं शक्नोमि?”
अनुवाद :
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन के फल अपनी पत्नी को दिये। उन्हें खाकर उसकी पत्नी ने सोचा, “अहो! वह बन्दर प्रतिदिन मीठे जामुन के फल खाता है। अतः अवश्य ही उसका हृदय भी अति मधुर होगा।” वह अपने पति से बोली, “अरे, प्रतिदिन मधुर जामुन के फल खाकर आपके वानर-मित्र का हृदय कितना मधुर होगा ? उसके हृदय को खाकर मेरा हृदय भी अति मधुर हो जायेगा। इसलिए यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो शीघ्र ही उस बन्दर के हृदय को लाओ।”
मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अनेक प्रकार से रोका (इन्कार किया) परन्तु वह पक्के निश्चय वाली थी। विवश हुआ मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर के पास जाकर बोला, “हे मित्र, प्रतिदिन मैं ही यहाँ आया करता हूँ। आज तुम मेरे घर आओ।”
बन्दर ने उत्तर दिया, “तुम तो जल में रहते हो, मैं वहाँ किस तरह जा सकता हूँ?”
मकरः अवदत्, “अलं चिन्तया। त्वं मम पृष्ठोपरि उपविश। अहं त्वां नेष्यामि।”
यदा तौ नद्याः मध्यभागे स्थितौ तदा मकरः वानरम् अवदत्, “मम पत्नी तव हृदयं खादितुंइच्छति। अतः त्वां मम गृहं नयामि।”
मकरस्य वचनेन वानरः भीतः। किन्तुः चतुरः वानरः शीघ्रम् अवदत्, “रे मित्र! मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे निहितम्। अतः त्वं शीघ्र मां तत्र नय। अहं प्रमुदितमना मम हृदयं तुभ्यं दास्यामि। मकरः वानरं पुनः तास्यावासं आनीतवान्। चतुरः वानरः शीघ्रं कूर्दित्वा वृक्षोपरि आरुहत्।”
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अनुवाद :
मगरमच्छ बोला, “चिन्ता मत करो। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”
जब वे दोनों नदी के मध्य भाग ठहर गये, तब मगरमच्छ बन्दर से बोला, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। अतः तुमको घर ले चलता हूँ।”
मगरमच्छ के वचन से बन्दर भयभीत हो गया। किन्तु चतुर बन्दर शीघ्र बोला, “अरे मित्र ! मेरा हृदय तो वृक्ष के कोटर में रखा हुआ है। अतः तुम शीघ्र मुझे वहाँ ले चलो। मैं प्रसन्न मन से अपने हृदय को तुम्हें दे दूंगा। मगरमच्छ बन्दर को फिर से उसके निवास पर लेकर आया। चतुर बन्दर शीघ्र ही कूदकर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।”