विनय
आशीय है कि हम देश और
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नहीं कामना धन की मन में,
नहीं कामना है यश की।
पद की भी है नहीं कामना,
नहीं कामना सर्वस्व की।
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है बस केवल यही कामना,
सेवा कर देश की अपने।
बड़े हर्ष से परहित जाऊँ,
प्राण हथेली पर रख लड़ने।
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मात-पिता को कभी न भूलूँ,
कर्स सदा उनकी पद-पूजा।
उनके आगे लगे न कोई,
अच्छा जग में मुझको दूजा।
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