Hindi, asked by rinushibinsha, 7 months ago

विनय भक्ति-पद

आजुहौं एक-एक करि टरिहौं।

कैतुमहीं, कैहमहीं माधौ, अपनेभरोसैंलरिहौं।

हौं पतित सात पीढ़नि कौ, पतितैह्वै निस्तरिहौं।

अब हौं उघरि नच्यौ चाहत हौं, तुम्ह बिैं रद बिन करिहौं।

कत अपनी परतीति नसावत, मैंपायौ हरि हीरा।

सूर पतित तबहीं उठहै, प्रभु जब हँसि दैहौ बीरा॥ 1॥

नर तैं जनम पाइ कह कीनो?

उदर भरयौ कूकर सूकर लौं, प्रभुकौ नाम न लीनौ।

श्री भागवत सुनी नहिं श्रवननि, गुरु गोबिंद नहिं चीनौ।

भाव-भक्ति कछुहृदय न उपजी, मन विषया मैंदीनौ।

झूठौ सुभ अपनौ करि जान्यौ, परस प्रिया कैंभीनी।

अघ कौ मेरु बढ़ाइ अधम तू, अन्त भयौ बलहीनौ।

लख चौरासी जोनि भरमि कै फिरि वाहीं मन दीनौ।

सूरदास भगवंत-भजन बिनुज्यौ अंजलि-जल छीनौ॥ 2॥

गोकुल लीला-पद

अपनौ गाउँ लेउ नँदरानी।

बड़े बाप की बेटी, पूतहि भली पढ़ावति बानी।

सखा-भीर लैपैठत घर मैंआपु खाइ तौ सहिऐ।

मैं जब चली सामहैंपकरन, तब केगुन कहा कहिऐ।

भाजि गए दुरि देखत कतहूँ, मैं घर पौढ़ी आइ।

हरैं हरैं बेनी गहि पाछैं, बाँधी पाटी लाइ।
सुनुमैया, याकेगुन मोसौं, इन मोहिं लयौ बुलाई।

दधि मैंपड़ी सेंत की मोपै चीटी सबै कढ़ाई।

टहल करत मैंयाके घर की यह पति सँग मिलि सोई।

सूर बचन सुनि हँसी जसोदा, ग्वाल रही मुख गोई॥ 3॥

हरि सब भाजन फोरि पराने।

हाँक देत पैठेदैपेला नैंकुन मनहिं डराने।

सींकेछोरि, मारि लरकनि कौं, माखन-दधि सब खाई।

भवन मच्यौ दधि काँदौ, लरिकन रोवत पाए जाई।

सुनहु-सुनहु सबहिनि केलरिका, तैरौ सौ कहुँनाहिं।

हाटनिं-बाटनि, गलिनि कहुँकोउ चलत नहीं डरपाहिं।

रितुआए कौ खेल, कन्हैया सब दिन खेलत फाग।

रोकि रहत गहि गली साँकरी, टेढ़ी बाँधत पाग।

बारे तैंसुत ये ढंग लाए, मनहीं मनहिं सिहाति।

सुनैंसूर ग्वालिनि की बातैं, सकुचि महरि पछिताति॥ 4॥

वृंदावन लीला-पद

अब कैंराखि लेहु गोपाल।

दसहूँ दिसा दुसह दावागिनि, उपजी हैइहिं काल।

पटकत बाँस,काँसकुस चटकत,लटकत तालतमाल।

उचटत अति अंगार, फुटत प झपटत लपट काल।

धूम धँूधि बाढ़ी घर अम्बर, चमकत बिच-बिच ज्वाल।

हनि, बाह, मो, चातक, पिक, जत जीव बेहाल।

जनि जिय डरहु, नैन मँूदहु सब, हँसि बोलेनँदलाल।

सूर अगिनि सब बदन समानी, अभय दियेब्रज-बाल॥ 5॥

जसुमति टेरति कुँवर कन्हैया।

आगेदेखि कहत बलामहिं, कहाँरह्यो तब भैया।

मेरो भैया आवत अबहीं तोहिं दिखाऊँ मैया।

धीरज करहु, नैंकुतुम देखहु, यह सुनि लेत बलैया।

पुनि यह गहति मोहिं पमोधत, धरनि गिरी मुरझैया।

सूर बिना सुत भई अति ब्याकुल, मेरौ बाल कन्हैया॥ 6॥ summary

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Answered by sukhmandersingh582
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Answer:

I can't understand this ??????

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