Hindi, asked by zaresh1998, 5 months ago

विनय के पद
तुलसीदास
ऐसी मूढ़ता या मन की।
भाज
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।।
धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की।
नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होत लोचन की।।
ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़, छाँह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार-बस, छति बिसारि आनन की।
कहँ लों कहौं कुचाल कृपानिधि, जानत हौ गति जन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निजपन की।।
(२)
माधव! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रंथि न छूट।।
घृतपूरन कराह अंतरगत, ससि-प्रतिबिम्ब दिखावै।
ईधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै।।
तरु-कोटर महँ बस बिहंग, तरु काटे मरै न जैसे।
साधन करिय बिचार-हीन, मन सुद्ध होइ नहिं तैसे।।
अंतर मलिन बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।
मरइ न उरग अनेक जतन, बलमीकि बिविध बिधि मारे।।
तुलसीदास हरि-गुरु-करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार-घोर-निधि, पार न पावै कोई।।

please give the meaning in hindi​

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Answered by sakshidevkule0506
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Sorry I didn't understand

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