‘ विपदा ‘ पद से आप क्या समझते हैं ? अभिघातज उत्तर दबाव विकार के लक्षणों की सूचीबद्ध कीजिए I उसका उपचार कैसे किया जा सकता है ?
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"विपदा से तात्पर्य एक ऐसी घटना से है जो अचानक घटित हो जाती है। वह मनुष्य के जीवन में बिना किसी चेतावनी के आती है और जिसे रोका नही जा सकता। ये बड़े स्तर पर जन-धन की हानि कर जाती है। विपदा के अनेक स्वरूप हो सकते हैं जैसे कि निजी विपदायें, मानव जनित विपदायें और प्राकृतिक विपदायें। प्राकृतिक विपदाएं प्रकृति के प्रकोप का परिणाम है जोकि हमारे द्वारा पर्यावरण को बिगाड़ने के कारण उत्पन्न होती हैं। जैसे कि भूकंप, बाढ़, आंधी. तूफान, अत्यधिक वर्षा, ज्वालामुखी फटना इ्त्यादि। युद्ध, किसी महामारी का फैलना, किसी कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव आदि मानव जनित विपदाएं है जो कि मानव द्वारा किये महत्वाकांक्षी कार्यों का परिणाम होती हैं।
प्राकृतिक विपदाएं अभिघातज अनुभव देने वाली होती है क्योंकि ये अपने पीछे बचे हुये जीवित व्यक्तियों के लिये सांवेगिक रूप से आहत और स्तब्ध कर देने वाला अनुभव छोड़ जाती हैं। इसे अभिघातज उत्तर दबाब विकार (पी टी एस डी) कहते हैं। इसके निम्न लक्षण हैं।
(1) तात्कालिक प्रतिक्रियायें- विपदा की तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में सबसे पहले विस्मृति का अनुभव होता है अर्थात लोगों को यह अनुभव ही नहीं हो पाता कि उनके लिये इस विपदा का मतलब क्या था और यह उनके जीवन में कितनी भयानक क्षति को कर गई है । वह यह बात स्वीकार करने में बहुत समय लगा देते हैं कि उनके जीवन में एक भयंकर घटना घट चुकी है जिसने उनके जीवन को छिन्न-भिन्न कर दिया है । इस घटना से उबरने में उन्हें काफी समय लग जाता है।
(2) शारीरिक प्रतिक्रियायें- तात्कालिक प्रतिक्रियाओं के बाद पीड़ित लोगों में शारीरिक प्रतिक्रियायें उत्पन्न होने लगती है जैसे कि बिना काम के थकावट का अनुभव करना, भूख ना लगना. नींद ना आना, तनाव होना, अचानक से चौंक जाना या डर जाना।
(3) सांवेगिक प्रतिक्रियायें- सांवेगिक प्रतिक्रियाओं में शोक, दुख, भय, निराशा, अवसाद उत्पन्न होने लगता है। पीड़ित व्यक्तियों में चिड़चिड़ाहट आ जाती है । उनमें निराशा का भाव पनपने लगता है कि यह मेरे साथ ही क्यों हुआ । वो हताशा की स्थिति में आ जातें हैं और अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। उनमें जीवन के सामान्य क्रियाकलापों के प्रति रूचि खत्म हो जाती है।
(4) संज्ञानात्मक प्रतिक्रियायें- पीड़ित व्यक्तियों में व्याकुलता आ जाती है। उनकी स्मृति दुर्बल होने की संभावना हो जाती है। एकाग्रता में कमी होती है और बार-बार विपदा की घटना दुःस्वप्न बन कर मानसिक रूप से परेशान करती है।
(5) सामाजिक प्रतिक्रियायें- पीड़ित व्यक्ति सामाज से कट जाते हैं। अक्सर आसपास के लोगों से द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अपने संबंधियों से वाद-विवाद करने लगते हैं। सामाजिक क्रिया-कलापों से अलग-थलग से पड़ जाते हैं।
उपचार-यह सारी प्रक्रियाएं बहुत लंबे समय तक चल सकती हैं। कुछ स्थितियों में यह प्रतिक्रियायें जीवन भर चलती रहती हैं। पर कुछ उपचारों द्वारा इन्हें कुछ हद तक कम किया जा सकता है या बिल्कुल खत्म किया जा सकता है।
उपयुक्त परामर्श द्वारा, मानसिक रोगों के उपचार द्वारा इनकी तीव्रता को कम किया जा सकता है तथा अभिघात उत्तर दबाब विकार (पी टी एस डी) के स्तर में सुधार किया जा सकता है । आर्थिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से सांत्वना दे कर पीड़ित व्यक्तियों में दुख के आवेग को बहुत हद तक कम किया जा सकता है । उनको प्रेरणा देकर धीरे-धीरे समाज की मुख्य धारा में वापस लाया जा सकता है तथा उन्हें एक नये जीवन के आरंभ के लिये अभिप्रेरित किया जा सकता है।
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