Hindi, asked by anand4274, 9 months ago

वे पदार्थ जिनका उपयोग सौर सैलो के निर्माण में होता है

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Answered by manishanavariya
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Answer:

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Explanation:

अधिकांशतः अकार्बनिक सौर सेल सिलिकॉन से बनते हैं। अकार्बनिक सौर सेल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल, पॉलीक्रिस्टलीय सौर सेल तथा थिन-फिल्म यानि पतली झिल्ली वाले सौर सेल।

मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल बनाने के लिये पहले पिघले हुए सिलिकॉन से एकल तथा समरूप पिंड यानि इंगोट बनाए जाते हैं और फिर उनसे पतली चौकोर परत काटी जाती हैं। इस तरह बने सौर सेलों की दक्षता लगभग 15 प्रतिशत होती है। मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल अपेक्षाकृत कम जगह घेरते हैं और अन्य सभी प्रकार के सौर सेलों की अपेक्षा अधिक समय तक चलते हैं। और जब बहुत से सिलिकॉन क्रिस्टलों को एक साथ ढलाई करके बनाए गए पिंड से काटी गई पतली परत से सौर सेल बनाया जाता है तो वह पॉलीक्रिस्टलीय सौर सेल होता है। मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल की अपेक्षा ये अधिक सस्ते होते हैं, क्योंकि इनके बनाने में सिलिकॉन की बर्बादी बहुत कम होती है। परन्तु मोनोक्रिस्टलीय सिलिकॉन सौर सेल की अपेक्षा इनकी दक्षता कम होती है, क्योंकि इसके लिये इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ उतना शुद्ध नहीं होता है। साथ ही उच्च तापीय अवस्था में इनकी दक्षता कम हो जाती है। आजकल जितने सौर सेल इस्तेमाल किए जा रहे हैं उनमें अधिकांश पॉलीक्रिस्टलीय तथा मोनोक्रिस्टलीय सौर सेल ही हैं, चाहे वह सौर फार्म में लगे सौर पैनल हों या ट्रेफिक लाइट में लगे सौर सेल हों।

थिन-फिल्म सौर सेल बनाने के लिये अमोर्फस यानि आकारहीन सिलिकॉन या कैडमियम टेल्यूराइड, कॉपर इंडियम तथा गेलियम सेलिनाइड जैसे पदार्थों की अत्यंत पतली परतों का उपयोग किया जाता है। ये सौर सेल लचीले होते हैं तथा इनका उत्पादन काफी सस्ता होता है। लेकिन इनकी पावर डेंसिटी यानि विद्युत घनत्व काफी कम होता है, जिसके कारण अन्य सौर पैनलों की अपेक्षा इनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक चाहिए। क्रिस्टलीय सौर सेलों की अपेक्षा ये अधिक महँगे तथा इनके लगाने के लिये अधिक जगह की आवश्यकता होती है। इसलिये इस तरह के सौर पैनल केवल सौर फार्मों में ही लगाए जाते हैं जहाँ आकार की कोई सीमा नहीं होती है। इनके लचीलेपन के कारण इनका उपयोग अपेक्षाकृत अधिक किया जाता है। इसलिये आज के मार्केट में इनकी माँग बढ़ती जा रही है।

यद्यपि अभी भी सिलिकॉन आधारित अकार्बनिक सौर सेल ही ज्यादातर उपयोग किए जा रहे हैं, परंतु इनकी कम दक्षता और अधिक कीमत के चलते दुनियाभर के वैज्ञानिक और उन्नत किस्म के सौर सेल बनाने में जुटे हुये हैं।

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