विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः। यशसि चाभिरुचिः व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।।
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विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्प
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