Hindi, asked by nutanshahi782, 3 months ago

वीर कुंवर सिंह के बारे में 10 पंक्तियां लिखिए ​

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Answered by Anonymous
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वीर कुंवर सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर नामक गांव में हुआ था। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म-तारीख 12 अप्रैल 1782 बताते हैं तो कुछ 1778 के लगभग मानते हैं। उनके यहां जमींदारी चलती थी।

सन 1826 में कुंवर सिंह पर अपने पैतृक जमींदारी संभालने का दायित्म आ पड़ा। उन्हें जमींदारी से प्रतिवर्ष 6 लाख रुपए नकददद की आमदनी हो जाया करती थी। कुंवर सिंह शुरू में अंग्रेजों की कपटपूर्ण चाल को नहीं समझ सके। जब उन्होंने अंग्रेजों को द्वेषपूर्ण नीति को समझा तब उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्हीं दिनों कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध कई क्रांतिकारी संगठनों को जन्म दिया। विश्व के इतिहास में यह पहली घटना थी, जिसमें 80 वर्ष के एक वयोवृद्ध सेनानी ने तलवार लेकर अंग्रेजों को ललकारा था।

26 जुलाई 1857 की घटना है। कैप्टन सी. डनबर के नेतृत्व में सोन नदी पार 450 सिपाही किनारे पहुंचे। वे आगे बढ़े, तभी विद्रोहियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिसमें कैप्टन सी. डनबर मारा गया। यह सारी योजना कुंवर सिंह की सूझ-बूझ से संपन्न हुई। कुंवर सिंह ने जगदीशपुर के गढ़ में हथियार और गोला-बारूद बनाने का एक कारखाना खोल रखा था। मेजर आयर ने जगदीशपुर पर आक्रमण करने की योजना बनाई।

12 अगस्त 1857 को कुंवर सिंह के किले पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। दूसरी ओर, अपने सहयोगियों के साथ कुंवर सिंह मिर्जापुर पहुंचे। उनके साथ चंदेल राजपूत भी हो लिए। नाना साहब और तात्या टोपे से मिलकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ व्यूह-रचना शुरू कर दी

Answered by divyabhanushali2015
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Answer:

कुंवर सिंह (13 नवंबर 1777 - 26 अप्रैल 1858) सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे।अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है। वे राजपूत समाज से थे। वो राजपूतों की उज्जैन शाखा से थे।

वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवंबर 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके माताजी का नाम पंचरत्न कुंवर था. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे।

1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया।[5] बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने अपने सेनापति मैकु सिंह एवं भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।[6]

27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।

वीरगति संपादित

इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में, जगदीशपुर के पास अंतिम लड़ाई लड़ी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भाड़े के सैनिकों को इन्होंने पूरी तरह खदेड़ दिया। उस दिन बुरी तरह घायल होने पर भी इस बहादुर ने जगदीशपुर किले से गोरे पिस्सुओं का "यूनियन जैक" नाम का झंडा उतार कर ही दम लिया। वहाँ से अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को इन्होंने वीरगति पाई।

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