विरुपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएं बताएं
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विरुपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएं बताएं।
विरुपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएं इस प्रकार हैं..
- विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर हेमकूट पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस मंदिर का गोपुरम 50 मीटर ऊंचा है। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बना हुआ है और यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है।
- इस मंदिर पर दीवारों पर भित्ति चित्रों के माध्यम से अनेक प्रसंगों का वर्णन किया गया है।
इस मंदिर के निर्माण के विषय में पौराणिक मान्यता ये है कि इसके बारे में यह कहा जाता है कि जब रावण शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तो रास्ते में यहीं पर रुका था और उसने एक बूढ़े व्यक्ति को शिवलिंग हाथ में पकड़ा दिया था और जमीन पर नही रखने को बोला लेकिन उस बूढ़े व्यक्ति ने वह शिवलिंग जमीन पर रख दिया और फिर शिवलिंग वहां से हिला नही। तभी से वहाँ पर ये शिवमंदिर बन गया।
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हंपी को राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में 1976 ई ० में मान्यता मिली थी। हंपी को सन् 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल घोषित किया गया।
Answer: विरुपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएं इस प्रकार हैं..
१. , मुख्य मंदिर में एक गर्भगृह, तीन पूर्व कक्ष, एक स्तंभयुक्त हॉल और एक खुला स्तंभयुक्त हॉल है । इसे नाजुक नक्काशीदार खंभों से सजाया गया है।
२. मंदिर के चारों ओर एक खंभे वाला मठ, प्रवेश द्वार, आंगन, छोटे मंदिर और अन्य संरचनाएं हैं।
Explanation:
विरुपाक्ष मंदिर की दो विशेषताएं इस प्रकार हैं..
१. , मुख्य मंदिर में एक गर्भगृह, तीन पूर्व कक्ष, एक स्तंभयुक्त हॉल और एक खुला स्तंभयुक्त हॉल है । इसे नाजुक नक्काशीदार खंभों से सजाया गया है।
२. मंदिर के चारों ओर एक खंभे वाला मठ, प्रवेश द्वार, आंगन, छोटे मंदिर और अन्य संरचनाएं हैं।
मंदिर में भगवान शिव की सवारी नंदी की एक विशाल मूर्ति भी विराजित है और यह पत्थर की बनी हुई है। एक ओर आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मंदिर में एक अर्ध शेर और एक अर्ध मनुष्य की देह में नृसिंह की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति भी विराजित है । विरूपाक्ष मंदिर में जाने का प्रवेश द्वार का गोपुरम हेमकुटा पहाड़ियों में रखी चट्टानों से घिरा हुआ है। साथ ही आपको बता दें कि चट्टानों का ये दृश्य आपको आश्चर्य में डाल सकता है।
विरुपाक्ष मंदिर में रखी शिवलिंग की कहानी आपको बता दें कि मंदिर में एक शिवलिंग भी रखी हुई है। जिसके बारें में कहा जाता है कि रावण की अट्टु भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने आर्शीवाद के रूप एक शक्तिशाली शिवलिंग दी और कहा कि इस शिवलिंग को तुम जहां भी रख दोगें ये वहीं पर विस्थापित हो जाएगी। इसलिए रास्तें में इसे नीचें मत रखना। रावण शिवलिंग को लेकर चल दिया, लेकिन रावण को रास्तें में रूकना पड़ा जिस कारण उसने शिवलिंग को एक बुर्जुग को सौपतें हुए कहा कि मैं आता हूं, आप इसे नीचें मत रखना। मगर दुर्भाग्यवश वो बुर्जुग शिवलिंग को ज्यादा देर तक नहीं संभाल सकें और शिवलिंग को नीचे ही रख दिया। फिर क्या था शिव के कहें अनुसार रावण शिवलिंग को वापस नहीं उठा सका। यहीं वो जगह है जहां बुर्जुग ने शिवलिंग को रखा था। आज तक भी कोई इस शिवलिंग को
हिला नहीं सकता है। बस लगातार भगवान की कृपा पाने के लिए शिवलिंग के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है
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