Hindi, asked by riteshrana6854, 6 months ago

वीर रस का एक उदाहरण​

Answers

Answered by ItzMADARA
5

वीर रस की परिभाषा :-

  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है। इस रस में शत्रु पर विजय प्राप्त करने, कीर्ति प्राप्त करने आदि की भवन प्रकट होती है।

वीर रस का उदाहरण :-

साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।

भूषन भनत नाद बिहद नगारन के

नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।।

मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे,

यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे,

है और कि तो बात क्या गर्व मैं करता नहीं,

मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं।

वीर रस के अवयव :-

वीर रस के अवयव निम्न प्रकार हैं।

  • स्थाई भाव- उत्साह।
  • आलंबन (विभाव)-अत्याचारी शत्रु।
  • उद्दीपन- शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
  • अनुभाव -गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
  • संचारी भाव-आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।

वीर रस कविता :-

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

हाथ में ध्वज रहे बाल दल सजा रहे,

ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो।

वीर रस के बारे में और अधिक जाने :-

  • सामान्यत: रौद्र एवं वीर इन दोनों रसों की पहचान करने में ज्यादा कठिनाई होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दोनों के उपादान बहुधा एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं। दोनों के आलम्बन शत्रु तथा उद्दीपन उनकी चेष्टाएँ ही हैं तथा दोनों के व्यभिचारियों तथा अनुभावों में भी सादृश्यता हैं। कभी-कभी रौद्रता में वीरत्व तथा वीरता में रौद्रवत का आभास भी मिलता है। इन सब कारणों से कुछ विद्वान् रौद्र रस का अन्तर्भाव वीर में और कुछ वीर का अन्तर्भाव रौद्र में करने के अनुमोदक हो जाते हैं , परन्तु रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध तथा वीर रस के स्थायी भाव उत्साह में अन्तर पूर्णतया स्पष्ट है ।
Similar questions