विराट कोहली ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान कैसे बनाई?
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जब आपकी पहचान आपके काम से ना होकर काम की पहचान आप से होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके पेशे/काम में आपकी एक अलग से पहचान है,
- जब आपके फैन / दोस्त आपका नाम फेसबुक पर ना ढूंढ़कर गूगल पर ढूंढने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके दोस्तों में आपकी एक अलग से पहचान है,
- जब आपकी पहचान आपके माँ-बाप से ना होकर उनकी पहचान आप से होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके परिवार में आपकी एक अलग से पहचान है,
- जब आपके किसी अच्छे काम के कारण आपके शहर / देश का नाम रोशन होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके शहर और देश में आपकी एक अलग से पहचान है,
- और जब कभी इंसानियत की बात निकले और उनमें भी आपका जिक्र आने लग जाये,
तो ये समझिये कि ऊपर वाले के पास भी आपकी एक अलग से पहचान है।“
आज ज्यादातर लोग चाहते है कि उनकी एक अलग से पहचान हो, अपने ख़ास अंदाज या कार्य विशेष से वे लोगो में काफी लोकप्रिय हो और सब उन्हें अन्य लोगो की अपेक्षा ज्यादा आदर सत्कार देकर व्यवहार करें। लेकिन सवाल ये है कि ये पहचान वे किस तरह से बना सकते है। तो आज हम इस लेख द्वारा जानेंगे कि किस तरह से हम ज्यादा से ज्यादा अपनी एक अलग और अच्छी पहचान बना सकते है।
“महान मनुष्य की पहली पहचान उसकी नम्रता है|” आदमी को अपनी पहचान बनाने के लिए अपने अंदर कुछ गुणों को होना जरूरी है जिससे वो जल्द ही अपने मिलने वालों में प्रसिद्ध हो जाता है, किसी किसी में ये गुण जन्मजात होते है पर ज्यादातर हमें इन गुणों को विकसित करना पड़ता है या ये कह सकते है कि विद्यमान गुणों को हमें थोड़ा और चमकाना पड़ता है, जिससे हम अलग से अपनी एक पहचान बना सकें। । कहते है "अपनी पहचान बनाने के लिए अपनी प्रसिद्धी ना करके केवल अच्छे कार्य करना शुरू कीजिये, आपकी पहचान अपने आप बन जायेगी।" ये बात हमारे जीवन में काफी हद तक सही साबित होती है। अच्छे कार्यों के लिए अपनी पहचान बनाने के लिए ये अतिआवश्यक है कि हम हमेशा अच्छे कार्य करें, किसी अध्यापक ने एक छात्र से पूछा कि "बेटे, बड़े होकर क्या बनोगे", तो उस ने सीधे और सरल शब्दों में जवाब दिया कि "एक अच्छा आदमी", और वो तभी संभव है जब “आप कोई भी कार्य करते है उसे आप पूरी ईमानदारी से निभाएं।”
बहुत समय पहले की बात है एक शहर में भगवान् शिव का एक बहुत बड़ा मंदिर बनने जा रहा था। उसी शहर में रामलाल नामक एक बड़े दिल वाला राईस भी रहता था। मंदिर बनाने वाले उसके पास मंदिर के लिए चन्दा मांगने गए। उन्होंने उसे बताया कि "मंदिर के लिए ५०००/- रुपैये देने पर आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में मंदिर के एक थम्बे पर दानकर्ताओं के और नामों के साथ लिखा जाएगा,१०,०००/- रुपैये देने पर भगवान् की प्रतिमा के ऊपर लिखे जाने वाले मात्र ३ नामों में आपका नाम लिखा जाएगा पर २०,०००/- रुपैये देने पर तो मंदिर के नाम के नीचे केवल मात्र आपका नाम ही लिखा जाएगा। अब आपको दिल से जितना ज्यादा से ज्यादा दान देना चाहे उतना दे सकते है।
रामलाल ने उनकी सारी बातें सूनी और अंदर से २९,९९४/- रुपैये लाकर उन्हें दिए। मंदिर बनाने वाले बहुत खुश हुए लेकिन ३०,०००/- से ६ रुपैये कम का सबब नहीं समझ पाये और फिर उन्होंने रसीद काटने के लिए रामलाल से उसका पूरा नाम पूछा तो उसने बताया कि “मैं और हमारा पूरा परिवार शिव भगवान् का परम भक्त है। इसीलिए मुझे तुम ४,९९९/- की छे रसीदें काटकर दो, जो एक-एक रसीद मेरे माँ-बाप के नाम पर हो, एक रसीद मेरी पत्नी के नाम पर हो, एक रसीद मेरे नाम पर हो और एक-एक रसीद मेरे दोनों बच्चों के नाम पर हो।” ये बात सुनकर मंदिर बनाने वालों ने कहा, “अगर आप सबके लिए एक एक रुपैया ज्यादा दान देंगे तो सबका नाम स्वर्ण अक्षरों में दानकर्तों के साथ लिखा जाएगा।” उस पर रामलाल ने जवाब दिया कि “मैं दान तो खूब करना चाहता हूँ लेकिन उसका नाम करके किये गए दान को और अपने आप को शर्मिन्दा नहीं करना चाहता।”
हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में देखते है जहां कुछ लोग अपने कुछ ख़ास अंदाज या ख़ास कार्य के लिए पहचाने जाते है वहीँ कुछ लोग हमसे काफी बाद में आकर भी जल्द ही अपनी एक पहचान बना लेते है। आज हम वो ही जानने का प्रयास कि ऐसा क्या है जो उनको लोग ज्यादा पसंद करते है और हमें उतना नहीं।
पहचान बनाने का एक सीधा साधा और सरल तरीका है कि हम जल्द से जल्द परिपक्व (Mature) हो। अब कई जानो के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि एक इंसान को कब परिपक्व माना जाए। परिपक्वता के लिए कोई उम्र तय नहीं की जा सकती। कहते है "इंसान तब बड़ा नहीं होता जब वो बड़ी बड़ी बातें करने लग जाए, इंसान तब बड़ा होता है जब वो छोटी से छोटी बात को भी बिना कहे समझ जाए।" या ये कह सकते है कि “इंसान तब परिपक्व होता है जब वो अपने जिम्मेदारी को ना सिर्फ समझने लगे बल्कि उसे अच्छी तरह से निभाना सीख जाए।” आप अगर आपकी जिम्मेदारियां निभाते हुए आगे बढ़ते जाते है तो आपकी पहचान अपने आप बनती जाती है। “आज दुनिया में जितने लोगों ने भी अपनी अलग से एक पहचान बनायी है उसमें अगर एक सार्वजनिक (Common) बात है, तो वो है उनका अपने कार्यों के लिए खुद जवाबदार होना।" इसके अलावा कहते है कि केवल चरित्रवान व्यक्ति की ही पहचान बनती है और “चरित्रवान होने का मतलब है सच्चा, ईमानदार और विश्वासपात्र।”