वीररस मराठी उदाहरण स्पष्ट कारा कवित साहीत
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शृंगार, रौद्र तथा वीभत्स के साथ वीर को भी भरत मुनि ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा देवता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालो से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है।[12]उदाहरण -
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
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vir ras marathi udaharan
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