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वीरता की अभिव्यक्ति अनेक प्रकार से होती है। लड़ना-मारना,खून बहाना,तोप तलवार के
सामने न झुकना ही नहीं कर्ण की भाति याचक को खाली हाथ न लौटाना या बुद्ध की भाति
गूढ तत्त्वों की खोज में सांसारिक सुख त्याग भी वीरता ही है। वीरता तो एक अंत, प्रेरणा है।
वीरता देश-काल के अनुसार संसार में जब भी प्रकट हुई तभी अपना एक नया रूप लेकर
आई और लोगों को चकित कर गई। वीर कारखानों में नहीं ढलते न खेतों में उगाए जाते हैं।
वे तो देवदार के वृक्ष के समान जीवन रूपी वन में स्वयं उगते हैं ,बिना किसी के पानी दिए,
बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं। वीर का दिल सबका दिल और उसके विचार सबके विचार
हो जाते हैं। उसके सकल्प सबके संकल्प हो जाते हैं। औरतों और समाज का हृदय वीर के
हृदय में धडकता है।
प्रश्न-(क) वीरता की अभिव्यक्ति किन-किन रूपों में हो सकती है?
वृक्ष से क्यों की गई है?
२
(ग) देश-काल और 'तोष-तलवार 'शब्द का विग्रह कर समास का नाम लिखिए।
(घ) विचार हृदय शब्दों में इक प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए।
(उ) उपर्युक्त गदयांश का एक शीर्षक दीजिए।
(च) वृक्ष के दो समानार्थी शब्द लिखिए।
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क। लड़ना-मारना,खून बहाना,तोप तलवार के
सामने न झुकना ही नहीं कर्ण की भाति याचक को खाली हाथ न लौटाना या बुद्ध की भाति
गूढ तत्त्वों की खोज में सांसारिक सुख त्याग भी वीरता ही है।
ख देवदार के वृक्ष के समान जीवन रूपी वन में स्वयं उगते हैं ,बिना किसी के पानी दिए,
बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं। वीर का दिल सबका दिल और उसके विचार सबके विचार
हो जाते हैं। उसके सकल्प सबके संकल्प हो जाते है
उ वीरता
च। पेड़
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