विस्फोटक हथियारों का बढ़ता प्रसार पर निबंध।
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अधिक खतरनाक बनती जा रही है। इसके अतिरिक्त इन हथियारों के बढ़ते उत्पादन व खरीददारी में आर्थिक व प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है, उसके कारण सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में बहुत कठिनाई होती है।
पिछले छ: दशकों में विश्व की एक बड़ी विसंगति यह रही है कि महाविनाशक हथियारों के इतने भंडार माजूद हैं जो सभी मनुष्यों को व अधिकांश अन्य जीवन-रूपों को एक बार नहीं कई बार ध्वस्त करने की विनाशक क्षमता रखते हैं। परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए गठित आयोग ने दिसंबर 2009 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि दुनिया में 23 हजार परमाणु हथियार मौजूद हैं, जिनकी विध्वंसक क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से डेढ़ लाख गुना ज्यादा है। आयोग ने बताया है कि अमेरिका और रूस के पास 2000 परमाणु हथियार ऐसे हैं जो बेहद खतरनाक स्थिति में तैनात हैं व मात्र चार मिनट में यह परमाणु हथियार दागे जा सकते हैं। आयोग ने कहा है कि जब तक कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, अनेक अन्य देश भी उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। यहां तक कि आतंकवादी संगठन भी परमाणु हथियार प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। अन्य महाविनाशक हथियारों विशेषकर रासायनिक व जैविक हथियारों के प्रतिबंध के समझौते चाहे हो चुके हैं, पर विश्व इन हथियारों से मुक्तनहीं हुआ है। जहां तक आतंकवादियों द्वारा महाविनाशक हथियारों के उपयोग का खतरा है तो यह परमाणु हथियारों की अपेक्षा रासायनिक हथियारों के संदर्भ में और भी अधिक है।
मानवीय विकास रिपोर्ट 1997 के अनुसार इस समय केवल अणु हथियारों के भंडार की विनाशक शक्ति बीसवीं शताब्दी के तीन सबसे बड़े युद्धों के कुल विस्फोटकों की शक्ति से सात सौ गुणा अधिक है। टाईम पत्रिका ने हाल ही में लिखा था कि आतंकवादी गिरोह भी ऐसे कामचलाऊ अणु हथियार का उपयोग कर सकते हैं जिससे एक लाख तक लोग मारे जा सकें, विशेषकर यदि उन्हें किसी विदेशी देश की सरकार का समर्थन प्राप्त हो जाए। जापान के ओम शिनरिकियों आतंकवादी गिरोह के गुप्त अड्डों पर जब छापे मारे गए तो केवल एक भवन से ऐसी प्रयोगशाला मिली जिसमें, टाईम पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 60 से 80 लाख लोगों तक की जान लेने वाली सारिन नर्व गैस बनाने की क्षमता थी।
अभी तक महाविनाशक हथियारों (परमाणु, रासायनिक, जैविक) का जो वास्तविक उपयोग हुआ है, उसमें हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों को सबसे अधिक विनाशक माना गया है। दूसरी ओर गैर-परमाणु बमों की इतनी सघन बमबारी के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिन्होंने नागासाकी से भी अधिक जीवन-क्षति की। यदि इस प्राय: उपेक्षित किए गए तथ्य को ध्यान में रखा जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि निशस्त्रीकरण प्रयासों को अपने मूल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कहीं अधिक व्यापक बनना पड़ेगा। परमाणु, जैविक या रासायनिक हथियारों को तो पूरी तरह समाप्त करना जरूरी है ही, साथ में सभी तरह के अन्य विनाशकारी हथियारों में तेजी से भारी कमी लानी पड़ेगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व मुख्य-सचिव कोफी अन्नान ने (वर्ष 2000 में) कहा था, ‘छोटे हथियारों से होने वाली मौतें और सब तरह के हथियारों से होने वाली मौतों से कहीं अधिक हैं। अधिकांश वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि किसी एक वर्ष में इन छोटे हथियारों से मरने वालों की संख्या हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से मरने वाले लोगों से भी अधिक है। यदि उनके द्वारा की गई जीवन-क्षति के आधार पर कहा जाए तो यह छोटे हथियार ही महाविनाशक हैं। पर अभी तक इन हथियारों के प्रसार को रोकने या नियंत्रित करने की विश्व स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है।’
एमनेस्टी इंटरनेशनल व आक्सफेम ने हाल की एक रिपोर्ट ‘ध्वस्त जीवन’ में कहा है, ‘किसी भी अन्य हथियार की अपेक्षा छोटे हथियार अधिक लोगों को मारने, घायल करने, विस्थापित करने, उत्पीडि़त करने, अगवा करने व बलात्कार करने के लिए उपयोग होते हैं।... इस समय विश्व में लगभग 64 करोड़ छोटे हथियार हैं। लगभग 60 प्रतिशत छोटे हथियार सैन्य व फलिस दलों से बाहर के क्षेत्र में हैं। केवल सेना के उपयोग के लिए वर्ष 2001 में 14 अरब गोलियों का उत्पादन किया गया - यानि विश्व की कुल आबादी के दोगुनी से भी ज्यादा गोलियों का उत्पादन।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई ‘हिंसा व स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट’ (हिंसविर) के अनुसार, ‘अधिक गोलियां अधिक तेजी से अधिक शीघ्रता से व अधिक दूरी तक फायर करने की क्षमता बढ़ी है व इसके साथ ही इन हथियारों की विनाशकता बढ़ी है।’ एक एके-47 में तीन सेकंड से भी कम समय में 30 राऊंड फायर करने की क्षमता है व प्रत्येक गोली एक किमी. से भी अधिक की दूरी तक जानलेवा हो सकती है।
ऐसे समय जब खाद्य संकट और जलवायु बदलाव जैसी गंभीर चुनौतियां मानवता के सामने खड़ी हैं, तेजी से बढ़ता हुआ सैन्य व शस्त्र खर्च एक ओर तो वास्तविक प्राथमिकताओं से संसाधन खींच रहा है व दूसरी ओर हिंसा को और विध्वंसक रूप देकर मनुष्य की समस्याओं को बढ़ा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों को बहुत महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं व उनसे उम्मीद की जाती है कि वे विश्व शान्ति के प्रति विशेष जिम्मेदारी का परिचय देंगे। पर कड़वी सच्चाई तो यह है कि यह पांच देश अमेरिका, रूस, चीन, यूके व फ्रांस विश्व के सबसे बड़े हथियार निर्यातक हैं। वर्ष 2002 के आंकड़ों के अनुसार इन पांचों देशों ने मिलकर 88 प्रतिशत हथियार निर्यात किए। कुल हथियारों के आयात का 67 प्रतिशत हिस्सा एशिया, मध्य पूर्व, लाटिन अमेरिका व अफ्रीका में पहुंचा।
125 देशों के सैन्य खर्च के सर्वेक्षण से पता चला कि इससे आर्थिक-सामाजिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा। जब दो या अधिक पड़ौसी देश हथियारों की दौड़ में उलझ जाते हैं तो यह समस्या और विकट हो जाती है।
पिछले छ: दशकों में विश्व की एक बड़ी विसंगति यह रही है कि महाविनाशक हथियारों के इतने भंडार माजूद हैं जो सभी मनुष्यों को व अधिकांश अन्य जीवन-रूपों को एक बार नहीं कई बार ध्वस्त करने की विनाशक क्षमता रखते हैं। परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए गठित आयोग ने दिसंबर 2009 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि दुनिया में 23 हजार परमाणु हथियार मौजूद हैं, जिनकी विध्वंसक क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से डेढ़ लाख गुना ज्यादा है। आयोग ने बताया है कि अमेरिका और रूस के पास 2000 परमाणु हथियार ऐसे हैं जो बेहद खतरनाक स्थिति में तैनात हैं व मात्र चार मिनट में यह परमाणु हथियार दागे जा सकते हैं। आयोग ने कहा है कि जब तक कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, अनेक अन्य देश भी उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। यहां तक कि आतंकवादी संगठन भी परमाणु हथियार प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। अन्य महाविनाशक हथियारों विशेषकर रासायनिक व जैविक हथियारों के प्रतिबंध के समझौते चाहे हो चुके हैं, पर विश्व इन हथियारों से मुक्तनहीं हुआ है। जहां तक आतंकवादियों द्वारा महाविनाशक हथियारों के उपयोग का खतरा है तो यह परमाणु हथियारों की अपेक्षा रासायनिक हथियारों के संदर्भ में और भी अधिक है।
मानवीय विकास रिपोर्ट 1997 के अनुसार इस समय केवल अणु हथियारों के भंडार की विनाशक शक्ति बीसवीं शताब्दी के तीन सबसे बड़े युद्धों के कुल विस्फोटकों की शक्ति से सात सौ गुणा अधिक है। टाईम पत्रिका ने हाल ही में लिखा था कि आतंकवादी गिरोह भी ऐसे कामचलाऊ अणु हथियार का उपयोग कर सकते हैं जिससे एक लाख तक लोग मारे जा सकें, विशेषकर यदि उन्हें किसी विदेशी देश की सरकार का समर्थन प्राप्त हो जाए। जापान के ओम शिनरिकियों आतंकवादी गिरोह के गुप्त अड्डों पर जब छापे मारे गए तो केवल एक भवन से ऐसी प्रयोगशाला मिली जिसमें, टाईम पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 60 से 80 लाख लोगों तक की जान लेने वाली सारिन नर्व गैस बनाने की क्षमता थी।
अभी तक महाविनाशक हथियारों (परमाणु, रासायनिक, जैविक) का जो वास्तविक उपयोग हुआ है, उसमें हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों को सबसे अधिक विनाशक माना गया है। दूसरी ओर गैर-परमाणु बमों की इतनी सघन बमबारी के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिन्होंने नागासाकी से भी अधिक जीवन-क्षति की। यदि इस प्राय: उपेक्षित किए गए तथ्य को ध्यान में रखा जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि निशस्त्रीकरण प्रयासों को अपने मूल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कहीं अधिक व्यापक बनना पड़ेगा। परमाणु, जैविक या रासायनिक हथियारों को तो पूरी तरह समाप्त करना जरूरी है ही, साथ में सभी तरह के अन्य विनाशकारी हथियारों में तेजी से भारी कमी लानी पड़ेगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व मुख्य-सचिव कोफी अन्नान ने (वर्ष 2000 में) कहा था, ‘छोटे हथियारों से होने वाली मौतें और सब तरह के हथियारों से होने वाली मौतों से कहीं अधिक हैं। अधिकांश वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि किसी एक वर्ष में इन छोटे हथियारों से मरने वालों की संख्या हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से मरने वाले लोगों से भी अधिक है। यदि उनके द्वारा की गई जीवन-क्षति के आधार पर कहा जाए तो यह छोटे हथियार ही महाविनाशक हैं। पर अभी तक इन हथियारों के प्रसार को रोकने या नियंत्रित करने की विश्व स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है।’
एमनेस्टी इंटरनेशनल व आक्सफेम ने हाल की एक रिपोर्ट ‘ध्वस्त जीवन’ में कहा है, ‘किसी भी अन्य हथियार की अपेक्षा छोटे हथियार अधिक लोगों को मारने, घायल करने, विस्थापित करने, उत्पीडि़त करने, अगवा करने व बलात्कार करने के लिए उपयोग होते हैं।... इस समय विश्व में लगभग 64 करोड़ छोटे हथियार हैं। लगभग 60 प्रतिशत छोटे हथियार सैन्य व फलिस दलों से बाहर के क्षेत्र में हैं। केवल सेना के उपयोग के लिए वर्ष 2001 में 14 अरब गोलियों का उत्पादन किया गया - यानि विश्व की कुल आबादी के दोगुनी से भी ज्यादा गोलियों का उत्पादन।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई ‘हिंसा व स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट’ (हिंसविर) के अनुसार, ‘अधिक गोलियां अधिक तेजी से अधिक शीघ्रता से व अधिक दूरी तक फायर करने की क्षमता बढ़ी है व इसके साथ ही इन हथियारों की विनाशकता बढ़ी है।’ एक एके-47 में तीन सेकंड से भी कम समय में 30 राऊंड फायर करने की क्षमता है व प्रत्येक गोली एक किमी. से भी अधिक की दूरी तक जानलेवा हो सकती है।
ऐसे समय जब खाद्य संकट और जलवायु बदलाव जैसी गंभीर चुनौतियां मानवता के सामने खड़ी हैं, तेजी से बढ़ता हुआ सैन्य व शस्त्र खर्च एक ओर तो वास्तविक प्राथमिकताओं से संसाधन खींच रहा है व दूसरी ओर हिंसा को और विध्वंसक रूप देकर मनुष्य की समस्याओं को बढ़ा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के 5 स्थाई सदस्यों को बहुत महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं व उनसे उम्मीद की जाती है कि वे विश्व शान्ति के प्रति विशेष जिम्मेदारी का परिचय देंगे। पर कड़वी सच्चाई तो यह है कि यह पांच देश अमेरिका, रूस, चीन, यूके व फ्रांस विश्व के सबसे बड़े हथियार निर्यातक हैं। वर्ष 2002 के आंकड़ों के अनुसार इन पांचों देशों ने मिलकर 88 प्रतिशत हथियार निर्यात किए। कुल हथियारों के आयात का 67 प्रतिशत हिस्सा एशिया, मध्य पूर्व, लाटिन अमेरिका व अफ्रीका में पहुंचा।
125 देशों के सैन्य खर्च के सर्वेक्षण से पता चला कि इससे आर्थिक-सामाजिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा। जब दो या अधिक पड़ौसी देश हथियारों की दौड़ में उलझ जाते हैं तो यह समस्या और विकट हो जाती है।
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