वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक्के किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा वो शायद अब नही होंगे!!
इसका भावार्थ बताए
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वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा
वो शायद अब नही होंगे!!
प्रसिद्ध गीतकार ‘गुलजार’ द्वारा रचित ‘किताबें झांकती हैं, बंद अलमारी के शीशों’ से नामक कविता कवि गुलजार ने किताबों के महत्व को याद करते हुए उनकी यादें ताजा की हैं।
भावार्थ ➲ कवि कहते हैं कि कि आज विज्ञान तकनीक के इस जमाने में किताबों का महत्व भले ही कम हो गया हो और ज्ञान प्राप्त करने के दूसरे साधन भी विकसित हो गए हों अर्थात ज्ञान तो हमें दूसरे माध्यम से मिलता रहेगा, लेकिन किताबों का जो एहसास था वह नहीं मिलने वाला। किताबों के साथ ज्ञान की बातें जुड़ी हुई होती हैं, और किताबों के साथ साथ कभी किसी का संदेश भी प्राप्त होता था जोकि फूल या पत्र के रूप में होता था। जिन्हें सूख जाने पर संभाल कर रखते थे और कभी उनको देखकर उन संबंधों की याद आ जाती थी। किताबों के गिरने और उठाने के बहाने कुछ लोगों के संबंध भी जुड़ जाते थे, जो जिंदगी भर साथ निभाते थे। कवि कहते हैं जब किताबों का उपयोग नहीं होगा तो ऐसे संबंध कैसे बनेंगे यानी किताबें कंप्यूटर तकनीक के जमाने में किताबों का महत्व कम हो गया है, इसी कारण वे संबंध बनने भी बंद हो गये हैं।
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