विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
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विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
संदर्भ-प्रसंग : यह पंक्तियां कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री ने अपने मन की व्यथा को व्यक्त करने का प्रयत्न किया है।
व्याख्या : कवयित्री का कहने का तात्पर्य यह है कि इस अपार संसार का कोई भी कोना ऐसा नहीं है, जहाँ पर वह यह कह सके कि वहाँ कोई उसका अपना है अर्थात इस संसार में कोई भी व्यक्ति उसे अपना जैसा प्रतीत नहीं होता, जो उसके मन के भावों को समझ सके। कवयित्री का कहने का तात्पर्य यह है कि उसका परिचय इतना ही है कि जो आज उसका अस्तित्व है, वही उसका परिचय है और उसका यही अस्तित्व कल इतिहास बनने वाला है। आज उसका जो उसका वर्तमान है, वही उसका परिचय है और यही वर्तमान भविष्य में इसका इतिहास बनेगा।
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"परिचय इतना, इतिहास यही" से कवयित्री का क्या तात्पर्य है ? समझाकर लिखिए।
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Explanation:
प्लीज इसका पूरा क्वेश्चन