वास्तव में सच्ची भक्ति क्या है?
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संसार में मोह माया के बंधनों में रहकर ईश्वर की सच्ची भक्ति नहीं की जा सकती है। व्यक्ति युवावस्था में रह कर मोह का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति के साधन ढ़ूढ़े। मनुष्य जब वृद्धावस्था में पहुंचता हैं तब वह प्रभु के शरण में जाने का प्रयास करता हैं। लेकिन तब तक जीवन का बहुमूल्य समय काफी पीछे छूट जाता है। मनुष्य को चाहिये कि वह सुख दुख दोनों में भगवान का भजन करे जिससे समय आने पर आत्मा परमात्मा में लीन हो सके।
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