विशाह निधार निभत्रणे दाणु आचार्य जी पिलिते
रकरयानानि भूसल
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दिल्ली
तिथि
परमन्येषु अवरोध
सत्रयं प्रणतिराशयः
सविनय
0) यत्
0) वैशारतमासे मम ज्येष्डयातु
देल्ली निवासिनी श्रीशारिरमहाभागाला सौभाग्य कोटिया iv) राट
सुनिश्चितः वर्तते। इल निर्दिष्टदिने मध्याहने प्रस्थान )
भक्तान (vi) गमनै न स्यात् ति कृत्वा (viii) पत्रम
प्रेषितम् । कृपया _0x) अवश्य वयम् अनुराध्या: किसानुरोध
X
अदीम शिव
मएका
सशिपति, पूर्वमेव, प्रार्थते निवेदने, कन्चमा, दशन-
अदानेन अगर, आगामिनि, वरयाग, पाणिग्रहासकार
अरवर
Answers
वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री......
प्राणिमात्र के हितंकर, दयावन्त, श्रमणेश्वर,साक्षात समयसार, मूलाचार के प्रतिबिम्ब समस्त चर ,अचरो के प्रति आपकी दया, करुणा, हम मानवों में ही नही स्वर्गों के इंद्रो देवताओं में भी जगजाहिर है आप अनुकम्पा के विशाल महासागर अथवा चारित्र के उत्तुंग हिमालय जाने जाते हो ऐसे में उपरोक्त शीर्षक में आपके प्रति कठोर सम्बोधन लिखते समय मेरी उंगलियां कांप रही है लेकिन मैं क्या करूं जो है, सो है...... मेरे आपके हम सबके सामने है।
भला कभी ऐसा होता है क्या..... जो पूज्यवर, यतिवर, गुरुदेव अपने दिव्यदेह के प्रति कर रहे है......
अक्सर कहा जाता है कि जो अपने प्रति सहयोग करे उसका ध्यान रखना चाहिये अपने अनुचर, सहयोगी, उपकारी पर भी करुणा करना चाहिए लेकिन पिछले इक्यावन वर्षो से आचार्यश्री अपनी दिव्यदेह के प्रति ज़रा से भी करुणावान, दयालु नही दिखते चाहे ग्रीष्मकाल में सूरजदादा 48 डिग्री तापमान पर भी कीर्तिमान गढ़ने ततपर हो वह आपके सामने पानी पानी हो जाता है | लेकिन आप अपने करपात्र में दूध, फल, मेवा तो बड़ी दूर की बात, कुछ ही अंजुली जल और कुछ गिने नीरस ग्रास का आहार उदर तल तक तो दूर कंठ से उदर तक ही नही पहुचता और आपके सम्पन्न हो जाते है।
शीतकालीन तुषारी ठंड में भी आप अपनी दिव्यदेह को 3 से चार घण्टे विश्राम करने निष्ठुर पाटा ही देते हो। हम सभी पथरीले, हठीले, कटीले तपते विहार पथ में आपके कोमल कोमल लाल लाल, मृदुल पावन चरणयुगलो को छालों युक्त, रक्तरंजित देख चुके है और आप ऐसे निर्दयी है कि उनकी ओर नज़र तक नही उठाते और आज हम सबने देख और सुन भी लिया कि पिछले दिनों से आपकी दिव्यदेह जर्जर हो चुकी है सप्ताह हो चुके दिव्यदेह के अस्वस्थ हुए और आपके निराहार के लेकिन आप तो ठहरे निर्मोही, अनियतविहारी, वीतरागी महासन्त आपको भला कोई रोक पाया है और वह बेचारा रोकने का विचार ही कैसे कर सकता है...... क्योंकि इन दिव्यदेहधारी ने अपनी दिव्यदेह के माता पिता भैया बहनों की नही मानी तो फिर हम दूसरों की क्या बिसात....
हमने माना कि चौथेकाल में ऐसे ही श्रमण होते थे उस काल मे वज्र सहनन क्षमता भी होती थी लेकिन इस महा पंचमकाल में जर्जर, वार्धक्य, दिव्यदेह के संग आपकी यह साधना, तपस्या सन्देश दे रही है कि कुछ ही भवों में दिव्यदेह धारी आचार्यश्री तीर्थंकर बन समोशरण में विराजित होंगे ऐसे कालजयी महासन्त के पावन चरणयुगलो में हृदय, आत्मा की असीम गहराइयों से कोटि कोटि नमोस्तु....... हे गुरुदेव! मेरी भी सुबुद्धि जागे काश..... मैं भी आपके समोशरण बैठ अपना भी कल्याण कर सकू..... क्षमाभावी एक नन्हा सा गुरुचरण भक्त.....
राजेश जैन भिलाई
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