वैशाख
में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर (हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं
देखा), उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। (सुख-दुख)
(हानि-लाभ) किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण
हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है।
(सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा) (कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त
नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है?)प्रस्तुत पद्यांश के कोष्टक में दिए गए ब्याव को का भेद लिखिए
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