विशाल पर्व कुंभ स्नान इतिहास में क्यों
प्रशिदध हैं?
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कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। फिर २०१९ में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन हुआ था
खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है। इसका हिन्दू धर्म मे बहुत ज्यदा महत्व है।
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हमारे धर्मशास्त्रों के मतानुसार कुंभ 12 कल्पित हैं जिनमें से 4 भारतवर्ष में प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यम्बकेश्वर (नासिक) में होते हैं तथा शेष 8 को देवलोक में माना जाता है। भारत के चारों स्थानों पर बृहस्पति के विभिन्न राशियों में संक्रमण और उसमें उपस्थिति की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण है, जैसे प्रयाग में बृहस्पति का वृषस्थ और सूर्य का मकरस्थ होना कुंभ पर्व का योग लाता है, तो उज्जैन में बृहस्पति का सिंहस्थ एवं चंद्र-सूर्य का मेषस्थ होना कुंभ पर्व का सुयोग बनाता है।