विशेष शब्द का रूप बताइए
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(१) अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् – वैसे शब्द की प्रातिपदिक संज्ञा होती है जो अर्थवान् (सार्थक) हो, किन्तु धातु या प्रत्यय नहीं हों।
(२) कृत्तद्धितसमासाश्चर — कृत्प्रत्ययान्त (धातु के अन्त में जहाँ ‘तव्यत्’, ‘अनीयर’, ‘ण्वुल’, ‘तृच’ आदि कृत्प्रत्यय लगे हों) तद्वितप्रत्ययान्त (शब्द के अन्त में जहाँ ‘घञ्’, ‘अण’ आदि तद्धित प्रत्यय हों) तथा समास की भी प्रातिपदिक संज्ञा होती है।
इन प्रातिपदिकसंज्ञक शब्दों के अन्त में सु, औ, जस् आदि २१ सुप् विभक्तिर्यां लगती हैं, तब वह सुबन्त होता है और उसकी पदसंज्ञा होती है। इन पदों का ही वाक्यों में प्रयोग होता है, क्योंकि जो पद नहीं होता है उसका प्रयोग वाक्यों में नहीं होता है – ‘अपदं न प्रयुञ्जीत’।
संस्कृत भाषा में विभक्तियाँ होती हैं तथा प्रत्येक विभक्ति में एकवचन, द्विवचन और बहुवचन में अलग-अलग रूप होने पर २१ रूप होते हैं। ये सुप् कहे जाते हैं। सुप में ‘सु’ से आरम्भ कर ‘प्’ तक २१ प्रत्यय (विभक्ति) हैं, जो अग्रलिखित हैं –
मोटे तौर पर ये सात विभक्तियाँ क्रमशः कर्ता, कर्म आदि ७ कारकों का बोधक होती हैं (सब जगह ऐसा नहीं होता है)। सम्बोधन कारक में प्रथमा विभक्ति होती है, किन्तु एकवचन में थोड़ा-सा अन्तर रहता है। उदाहरण के लिए प्रातिपदिक (शब्द) में सुप् प्रत्यय लगाकर बने पदों की कारक के अनुसार अर्थयुक्त
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