विशिष्ट में उपसर्ग और प्रत्यय क्या है?
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प्रश्न :- विशिष्ट में उपसर्ग और प्रत्यय क्या है ?
उतर :- वि (उपसर्ग) और शिष्ट (प्रत्यय)
उपसर्ग की परिभाषा :-
जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ , उन शब्दांशोँ को उपसर्ग कहते हैँ । जैसे –‘हार’ एक शब्द है। इस शब्द के पहले यदि ‘प्र’ , उपसर्ग जोड़ दें तो प्र+हार = प्रहार तथा उपसर्गोँ का अर्थ कहीं – कहीं नहीं भी निकलता है । जैसे – ‘आरम्भ’ का अर्थ है – शुरुआत। इसमेँ ‘प्र’ उपसर्ग जोड़ने पर नया शब्द ‘प्रारम्भ’ बनता है जिसका अर्थ भी ‘शुरुआत’ ही निकलता है । जैसे :-
1.प्र + बल = प्रबल
2.अनु + शासन = अनुशासन
3.अ + सत्य = असत्य
4.अप + यश = अपयश
प्रत्यय की परिभाषा :-
प्रत्यय का अपना अर्थ नहीं होता और न ही इनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है । प्रत्यय अविकारी शब्दांश होते हैं जो शब्दों के बाद में जोड़े जाते है । कभी कभी प्रत्यय लगाने से अर्थ में कोई बदलाव नहीं होता है । प्रत्यय लगने पर शब्द में संधि नहीं होती बल्कि अंतिम वर्ण में मिलने वाले प्रत्यय में स्वर की मात्रा लग जाएगी लेकिन व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है ।
1.समाज + इक = सामाजिक
2.सुगंध +इत = सुगंधित
3.भूलना +अक्कड = भुलक्कड
विशिष्ट शब्द में उपसर्ग वि है।