विशिष्ट ऊष्मा धारिता क्या है
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यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। विशिष्ट ऊष्मा का S.I. मात्रक जूल/ किलोग्राम/ केल्विन है एवं इसका व्यावहारिक मात्रक कैलोरी /ग्राम / डिग्री सेल्सियस होता है। इसका लोहे की छड़ पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका उत्तर क्या होगा.
Answer:
किसी पदार्थ के द्रव्यमान का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की ऊष्मा धारिता (Heat capacity) कहते हैं। इस भौतिक राशि का एस आई मात्रक जूल प्रति केल्विन (J/K) है। ऊष्मा धारिता की विमा [M1L2T-2Θ-1] है।
किसी १ ग्राम वस्तु में १° सेल्सियस ताप-परिवर्तन करनेवाली उष्मा को उसकी विशिष्ट उष्मा (स्पेसिफ़िक हीट) कहते हैं। किसी वस्तु की विशिष्ट उष्मा S हो तो उसके m ग्राम का ताप t डिग्री सेल्सियस बढ़ाने में m S t कलरियाँ व्यय होती हैं।
किसी वस्तु की विशिष्ट उष्मा ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम उसको ऊँचे ताप तक गरम करते हैं और फिर उसको एक आंशिक रूप से पानी भरे बरतन (कलरीमापी) में डाल देते हैं। वस्तु के ठंडी होने में जितनी कलरियाँ मिलीं उनको कलरीमापी और पानी द्वारा प्राप्त कलरियों के बराबर रखकर विशिष्ट उष्मा की गणना कर लेते हैं।
विशिष्ट उष्मा निकालने की एक अन्य विधि यह भी है कि पदार्थ के ऊपर इतनी भाप को प्रवाहित करें कि उसका ताप बढ़कर भाप के ताप के बराबर हो जाए। यदि इस विधि में m ग्राम भाप संघनित (कनडेन्स) होती है तो उसके पानी बनने में m L कलरी प्राप्त होती हैं (L = गुप्त ताप)। इसको पदार्थ द्वारा शोषित उष्मा के बराबर रखकर विशिष्ट उष्मा की गणना कर लेते हैं।
तापवृद्धि के समय बाह्य स्थिति के अनुसार पदार्थों की विशिष्ट उष्मा के अनेक मान होते हैं। एक तो स्थिर आयतनवाली विशिष्ट उष्मा होती है जो उसकी आंतरिक ऊर्जा से संबंधित रहती है। मापन क्रिया के समय आयतन में परिवर्तन होने के कारण आयतनवृद्धि के लिए कार्य करना पड़ता है और तापवृद्धि के साथ साथ कुछ उष्मा की इस काम के लिए भी आवश्यकता होती है। काम की मात्रा दाब के आश्रित है और यदि यह दाब स्थिर न हो तो यह मात्रा भी परिवर्तित होगी। इसीलिए स्थितियों में भेद होने के कारण विशिष्ट उष्मा के अनेक मान होते हैं, किन्तु सुविधा के लिए केवल दो पर ही विचार किया जाता है। एक का सम्बन्ध स्थिर आयतन और दूसरे का स्थिर दाब से है और इनको क्रमानुसार Cv और Cp लिखा जाता है। ठोसों और द्रवों में तापीय प्रसरण अपेक्षाकृत कम होता है, अत: विशिष्ट उष्मा के अनेक मान लगभग बराबर होते हैं किन्तु गैसों में इनमें बहुत अन्तर होता है। बहुपरमाण्वीय अणुओं में विशिष्ट उष्मा को अणुभार से गुणा करने पर उनकी आणव उष्मा (मॉलिक्युलर हीट) और एक परमाणुक अणुओं में विशिष्ट उष्मा को परमाणुभर से गुणा करने पर उनकी पारमाण्वीय उष्मा (ऐटॉमिक हीट) प्राप्त होती है।