विशेषताएँ
बंध-लेखन
नम्नलिखित विषयों में से किसी एक विष
1) टेलीफोन (दूरभाष) की आत्मकथा ।
Answers
Explanation:
मैं टेलीफोन हूं। हिंदी प्रेमी मुझे दूरभाष के नाम से जानते हैं। मुझे कौन नहीं जानता? मेरे माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से इस तरह बात हो जाती है मानो वह आपके सामने ही बैठा हूं और मध्य में कोई दीवार हो। इस समय मेरे परिवार की सदस्य संख्या इतनी ज्यादा है कि उनकी गिनती करना कोई आसान काम नहीं। मेरे संबंधियों ने एक कमरे को दूसरे कमरे से, एक नजर को दूसरे नगर से और एक देश को दूसरे देश से इस तरह जोड़ दिया है कि उनके बीच की दूरी मनुष्य को महसूस नहीं होती।
मैं टेलीफोन हूं। हिंदी प्रेमी मुझे दूरभाष के नाम से जानते हैं। मुझे कौन नहीं जानता? मेरे माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से इस तरह बात हो जाती है मानो वह आपके सामने ही बैठा हूं और मध्य में कोई दीवार हो। इस समय मेरे परिवार की सदस्य संख्या इतनी ज्यादा है कि उनकी गिनती करना कोई आसान काम नहीं। मेरे संबंधियों ने एक कमरे को दूसरे कमरे से, एक नजर को दूसरे नगर से और एक देश को दूसरे देश से इस तरह जोड़ दिया है कि उनके बीच की दूरी मनुष्य को महसूस नहीं होती।
मैं टेलीफोन हूं। हिंदी प्रेमी मुझे दूरभाष के नाम से जानते हैं। मुझे कौन नहीं जानता? मेरे माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से इस तरह बात हो जाती है मानो वह आपके सामने ही बैठा हूं और मध्य में कोई दीवार हो। इस समय मेरे परिवार की सदस्य संख्या इतनी ज्यादा है कि उनकी गिनती करना कोई आसान काम नहीं। मेरे संबंधियों ने एक कमरे को दूसरे कमरे से, एक नजर को दूसरे नगर से और एक देश को दूसरे देश से इस तरह जोड़ दिया है कि उनके बीच की दूरी मनुष्य को महसूस नहीं होती। मेरे आविष्कारक का नाम ग्राहम बेल है लेकिन उससे पहले भी कई व्यक्तियों के मन में मेरी कल्पना हिलोरे मार रही थी। सबसे पहले मेरा मस्तक अपने पितामह हेमहोल्टेज के चरणों में श्रद्धा से नत होता था जिन्होंने लहरों की वैज्ञानिक सच्चाई को दुनिया के सामने रखा। इस जर्मन वैज्ञानिक ने दो प्यालों के बीच एकता रखकर दूर तक आवाज भेजने के कई परीक्षण किए लेकिन इस संबंध में उसने एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी। इसमें प्रतिपादित सिद्धांत ही मेरे जन्मदाता ग्राहम बेल की प्रेरणा के स्त्रोत सिद्ध हुए। सन् 1821 में चार्ल्स व्हीटस्टोन ने भी अपने अद्भुत यंत्र द्वारा दूर तक आवाज पहुंचाने के अनेक परीक्षण किए। जर्मनी के एक अन्य वैज्ञानिक ने इस दिशा में कुछ प्रयत्न किए लेकिन उसका यंत्र मानव ध्वनि को अधिक दूर तक ले जाने में सफल नहीं हो सका। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक मैं केवल कल्पना की ही वस्तु बना रहा। अंत में, 1876 में ग्राहम बेल इस कल्पना को साकार रुप देने में सफल हुए।
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