वंशीधर की स्थिति कैसी थी नमक का दरोगा चैप्टर है
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वंशीधर ईमानदार व सत्यनिष्ठ व्यक्ति था। दारोगा के पद पर रहते हुए उसने पद के साथ नमकहलाली की तथा उस पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए ईमानदारी, सतर्कता से कार्य किया। उसने भारी रिश्वत को ठुकरा कर पंडित अलोपीदीन जैसे प्रभावी व्यक्ति को गिरफ्तार किया।
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वंशीधर की स्थिति रोजगार की खोज में निकलने से पूर्व
रोजगार की खोज में निकलने से पूर्व वंशीधर के घर की हालत बहुत बुरी थी। उनके पिता एक साधारण पद पर नियुक्त थे तथा उनका मासिक वेतन बहुत कम था। यह धन मास के प्रारंभ में ही समाप्त हो जाता और फिर उनके घर रोजी-रोटी के लाले पड़ते थे। इसके अतिरिक्त वे ऋण के बोझ से दबे हुए थे और उनके पिता का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं था। घर में लड़कियाँ घास-फूस की तरह बढ़ रही थीं और पिता कगार के वृक्ष हो चुके थे। आर्थिक विपन्नता ने सब को रुला रखा था।
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वह सत्य निष्ठ और चरित्रवान दारोगा थे। उसके माता-पिता उसे बेईमानी की सलाह दी। उसके चारों ओर का समाज पूरी तरह भ्रष्ट था,, फिर भी वह कीचड़ में खिले हुए कमल की तरह, अंधेरे में जले हुए दीपक की तरह बड़े ही अपमान और स्वाभिमान से जीता । मुकदमा हारने के बाद भी लोगों ने चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्य बाणों की वर्षा की पर भी वह सिर ऊंचा करके जीता है। मिट्टी में मिला दिया जाने पर भी उसे कोई पछतावा नहीं है। इसीलिए अंत में पंडित अल आरोपदीन भी उसकी इस दृढ़ता पर मुग्ध हो जाते हैं।