वंशीधर ने धन से बैर मौल लिया था, उसका मूल्य चुकाना अनिवार्य था। बड़ी कठिनाई से एक सप्ताह बीता होगा कि मुअत्तली का परवाना आ पहुँचा | कर्तव्यपरायणता का दंड मिला | बेचारे भग्न हदय , शोक और खेद से व्यथित घर को चले । बूढ़े मुंशी जी तो पहले से ही कुदबुड़ा रहे थे कि चलते - चलते इस लड़के को समझाया था । लेकिन इसने एक ना सुनी । अपनी मनमानी करता है। ईमानदार बनने चले हैं। पढ़ना लिखना सब अकारथ गया । इसके कुछ
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