विश्व बंधुत्व की भावना जगाने के लिए हमें कौनसे कदम उठाने होंगे ?
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सभी मनुष्य एक सी सांस लेते हैं, एक सी ही सुख:दुःख की सम्वेदनाएँ इनके शरीर पर होती हैं, जिनसे वे राग द्वेष जगाते रहते हैं और सुखी दुःखी होने की अनुभूति करते रहते हैं। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह मनुष्य हिन्दू है, या मुस्लिम, क्रिस्चियन, या अन्य पंथानुगामी है, क्योंकि सांस या सम्वेदनाएँ इन सम्प्रदायों से परे हैं। कोई भी सांस न तो हिंदू होती है, न ही मुस्लिम, न ईसाई, या किसी अन्य पंथ से सम्बद्ध!
चाहे वह मनुष्य किसी पंथ से सम्बद्ध क्यों न हो, यदि विकार जगाता है तो दुःखी होगा ही। क़ुदरत का क़ानून सबके लिए बराबर है।
एक सद्गृहस्थ जैसे अपनी पत्नी और संतान को जोड़े रखता है वैसे ही परिवार के अन्य लोगो को, कुटुंब के अन्य लोगो को, अपने सगे सम्बन्धियों को बंधु बान्धवो को जोड़े, यानी उनसे स्नेह सम्बन्ध बनाये रखे।
स्वयं धनवान हो तो अपने निर्धन हुए बंधु-बान्धवो से स्नेह सत्कार का सम्बन्ध बनाये रखे। सहानुभूति और सहयोग का सम्बन्ध बनाये रखे। निर्धन है तो इस कारण उन्हें दुत्कारे नहीं। उनका अपमान नहीं करे। उनका यथोचित सम्मान करे। संकट में पड़े बंधु-बांधवों की यथाशक्ति सहायता करे।इस प्रकार उन्हें साथ जोड़े रखने का काम करे।
समय सदा एक सा नही रहता। पलटता है तो यही दुख्यारे बंधु-बांधव संपन्न हो सकते हैं। संकट के समय इन्हे सहायता देने का एहसान कभी नही भूलते। जाति-बंधुओ को इस प्रकार जोड़े रखना उत्तम मंगल है।