विश्व बंधुत्व par kavita lekhin
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जल पवन पाहन प्राण हैं,सन्मुख अभय में आश्रित
तेरे ह्रदय में नित्य होता. द्वेष का उद्गार क्यों?
ना है किसी के वास्ते. तेरे ह्रदय में प्यार क्यों?
निष्ठुर व दम्भी हैं.. सदा ही से अक्षम्य और श्रापित।
जो है अनिर्मित, है वही तो शुद्ध भी और सत्य भी,
क्यों चाहिए संसाधनों की ही. तुझे भरमार भी?
जीवों से जीवन छीनकर क्यों करता है विस्तार भी
तेरे करों का रक्त जो है. है दया से रिक्त भी।
क्या है कि जो, जिसके लिए तू भागता रहता सदा
मानव ही करता है कपट, मानव ही रह जाता ठगा,
हम सभी में उस ईश ने.... डाली है एक ही आत्मा,
तोड़ के सब मन के भ्रम,विश्व बंधुत्व का भाव जगा।
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