Economy, asked by dy055255, 5 months ago

वैश्विक महामारी करो ना पर जीवन शैली पर प्रभाव 100 .150

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Answered by divyasavant14
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Answer:

कोरोना वायरस के संक्रमण से सारा विश्व हैरान-परेशान है। इसी संदर्भ में चीन का वुहान मार्केट सबकी नजरों में आया और वायरल हुए इस मार्केट के वीडियो पर नजर ठहर गई। साथ में कैप्शन में एक लाइन आपका ध्यान खींच लेगी- 'They will eat anything' (वे कुछ भी खा लेंगे)। दिल दहला देने वाला दृश्य था। कोई इतना स्वार्थी! इतना निर्दयी! इतना क्रूर और प्रकृति का नाशुक्रा कैसे हो सकता है?

धरती, आकाश, जल कहीं भी निवास करने वाला कोई भी पशु-पक्षी, कीड़े चाहे कैसे भी नन्ही-सी जान से लेकर के बड़े से बड़ा शरीरधारी जीव। सभी वहां कट-फटकर बिकाऊ हैं। जिंदा भी अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं पिंजरे में निरीह! बेचारे। लाचार! अपनों को जिंदा भूनते-कटते हुए देखते! कितना वीभत्स? कितना घृणास्पद?

याद आती हैं मुझे ये पंक्तियां-

धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,

हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।

सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,

बाधारहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।

पर कहां होता है ऐसा? सर्वाधिक स्वार्थी इंसानों ने धरती, आकाश, जल सभी जगह अपना अतिक्रमण, नाजायज कब्जा जमा लिया है। कोई जगह ऐसी नहीं जहां बाकी के प्रकृति के बच्चे सुकून से जी पाएं। इंसानों की हैवानियत किसी को नहीं बख्श रही।

आकीर्णम् ऋषिपत्निनाम् अटजद्वार ओधिमि:।

अपत्य अरिवनिवार भागधेय:अर्चिते मृगै:।

रघुवंश वशिष्ठ के आश्रम का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने कहा कि आदमी और जानवर में मां-बेटे का रिश्ता कायम था। आश्रम हिरणों से भरपूर था और वे अपने खाने के हिस्से के लिए बच्चों के माफिक अनाज अंदर ले जाती हुई ऋषि पत्नियों का रास्ता अधिकारपूर्वक स्नेह के साथ रोकते थे।

यह तो एक छोटा-सा उदाहरण है। शकुंतला पुत्र भरत तो शेरों के साथ खेला करते थे। ऐसा नहीं है कि सदैव ही आमिष-निरामिष का बंटवारा करके प्रकृति का कहर या महामारियां फैलती हों। पर इतना तो निश्चित है कि जब-जब प्रकृति के संतुलन में मानवों का नाजायज हस्तक्षेप हुआ है, प्रकृति ने हमेशा दंडित किया है।

याद है न 'माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत'। 2012 में हम 7 अरब लोगों से अधिक हो गए हैं। 2050 तक 9.6 बिलियन तक पहुंचने की भविष्यवाणी की गई है। इन सभी अतिरिक्त लोगों को जीवित रहने के लिए भोजन, पानी, स्थान और ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

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