विश्व के महान गणितज्ञ "श्रीनिवास रामानुजन" के जीवन पर प्रकाश डालें |
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बचपन एवं शिक्षा
श्रीनिवास रामानुजन का बचपन बड़ा ही संघर्ष पूर्ण रहा। इनके जन्म के बाद चेचक रोग फैलने से श्रीनिवास रामानुजन चेचक रोग से ग्रसित हो गए। इसके बाद का जीवन उनका उनके ननिहाल में अपनी मां के साथ बीता। श्रीनिवास रामानुजन की प्रारंभिक शिक्षा अपने ही ननिहाल कांचीपुरम, मद्रास में हुई। वहीं उनकी माता ने उनका दाखिला करवाया था। लेकिन यहां इनकी शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाई, क्योंकि उनके ननिहाल की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने से उनकी माता ने वहां से कई ओर जाने का निर्णया लिया। जिसके बाद वो कुंबनकोनम रहने लगे और वहीं के एक विद्यालय में श्रीनिवास रामानुजन का फिर दाखिला करवाया। शुरू से ही श्रीनिवास रामानुजन को गणित में रूचि थी और उनके गणित में अच्छे नंबर आते थे। श्रीनिवास रामानुजन ने अपनी बाल्यावस्था में ही कई प्रमेय का निर्माण कर दिया।
काॅलेज शिक्षा और करियर
अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी होते ही उन्होंने टाउन हायर सेकेंडरी में स्नातक के लिए दाखिला लिया। श्रीनिवास रामानुजन ने 1904 में अपनी स्नातक पूर्ण कर ली। श्रीनिवास रामानुजन के मन में गणित के प्रति पागलपन था और यही समर्पण देखके उनके पिता उनसे खुश नहीं रहते थे। इसके बाद श्रीनिवास रामानुजन ने मद्रास के पचैय्या काॅलेज में एडमिशन लिया। लेकिन वो इससे संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वो फेल हो गए और उन्होंने वहां से पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इनकी दिलचस्पी गणित के प्रति कम नहीं हुई। वो पढ़ाई छोड़ने के बाद भी गणित को वैसे ही लग्न से समझा करते थे। उनके अपने पांव पर खड़ा करने के लिए इनके पिता ने इनका विवाह कर दिया था। जिसके बाद श्रीनिवास रामानुजन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। श्रीनिवास रामानुजन पर अपने परिवार की एक जिम्मेदारी आ गई थी जिसके लिए उन्हें काम भी करना जरूरी था। संघर्षों के समय में ही गणित के प्रति दिलचस्पी के चलते हुए एक बार इनका संपर्क प्रो हार्डी से हुआ। श्रीनिवास रामानुजन की गणित के प्रति दिलचस्पी को देखते हुए हार्डी ने उन्हें कैंब्रिज बुलाया। कैंब्रिज विश्वविद्यालय जाने के बाद इनको यहां से स्नातक की डिग्री भी मिली। वहां पर श्रीनिवास रामानुजन ने अपना शोध कार्य हमेशा जारी रखा चाहे स्वास्थ्य कैसा भी हो। इसके बाद श्रीनिवास रामानुजन राॅयल सोसायटी से जुड़े। लेकिन कुछ वक्त के बाद वातावरण के प्रभाव से ये उस वातावरण में समायोजित नहीं हो पाए और इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। इसके चलते उन्हें भारत ही आना पड़ा, क्योंकि वो इसी वातावरण में ढले हुए थे। भारत लौटने के बाद भी श्रीनिवास रामानुजन को काम की जरूरत थी। लेकिन उनके भारत आने के बाद उन्होंने प्राध्यापक के पद पर कार्य किया। इसके साथ-साथ उन्होनें गणित के क्षेत्र में काम बंद नहीं किया बल्कि नियमित रूप से शोध कार्य से जुड़े थे। इनके इसी समर्पण ने इन्हें एक ऐसी शख्सियत बनाया। श्रीनिवास रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में हजारों प्रमेय लिखी। इन्होंने बीज गणित के क्षेत्र में बहुत शोध कार्य किए। इतना ही नहीं श्रीनिवास रामानुजन ने कई गणितीय सूूत्र दिए हैं। श्रीनिवास रामानुजन की तर्क करने की शक्ति बढ़ी तेज थी। श्रीनिवास रामानुजन हमेशा किसी भी तथ्य को तर्क के आधार पर समझाया करते थे। गणित के क्षेत्र में बहुत से कार्य ऐसे भी हैं जिनसे इन्हें बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां मिली है। आज भी इनके सूत्र और इनकी प्रमेय आदि को गणित के क्षेत्र में बहुत काम में लिया जाता है। गणित के क्षेत्र में स्वास्थ्य और अपने जीवन के कई कष्टों को पार करते-करते पूरी लग्न से काम करना, इसी वजह से आज इनका नाम महान गणितज्ञों में गिना जाता है।
जीवन का अंतिम दौर
भारत के इस वातावरण में ढले होने से जब वो बाहर देश में रहे तो वहां पर वो पूरी तरह समायोजित नहीं हो पाए और उन्होंने वहां रहते हुए अपने शारीरिक कष्टों से बहुत संघर्ष किया। वो भारत आए तब उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ा था। श्रीनिवास रामानुजन ने सोचा भारत आने के बाद वो पूरी तरह ठीक हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ उनका स्वास्थ्य दिन-दिन बिगड़ता गया और 26 अप्रैल 1920 को उन्हें अंतिम सांस ली। इस दिन वो कम उम्र में ही हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चले गए। श्रीनिवास रामानुजन भले ही आज इस दुनिया में नहीं। लेकिन आज भी इस दुनिया में अमर है।
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ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे।[2] इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।