Hindi, asked by shaktipandey, 4 months ago

विश्वास बड़ी श्रद्धा पक्ष और विपक्ष लिखें​

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Answered by lawrishav
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Hello Friend. Give the full question

Answered by bm363009
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स्कंद पुराण का कथन है कि 'श्राद्ध' नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल (मूल स्रोत) है। इसका तात्पर्य यह है कि इसमें न केवल विश्वास है, प्रत्युत एक अटल धारणा है कि व्यक्ति को यह करना ही है।

श्राद्ध महिमा में कहा गया है- 'आयु: पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।।' - अर्थात जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।

हमारी संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। 'पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता:' - अर्थात पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं।

आत्मिक प्रगति के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है- 'श्रद्धा।' श्रद्धा में शक्ति भी है। वह पत्थर को देवता बना देती है और मनुष्य को नर से नारायण स्तर तक उठा ले जाती है। किंतु श्रद्धा मात्र चिंतन या कल्पना का नाम नहीं है। उसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी होना चाहिए। यह उदारता, सेवा, सहायता, करुणा आदि के रूप में ही हो सकती है। इन्हें चिंतन तक सीमित न रखकर कार्यरूप में, परमार्थपरक कार्यों में ही परिणत करना होता है। यही सच्चे अर्थों में श्राद्ध है।

संसार के सभी देशों, सभी धर्मों व सभी जातियों में किसी न किसी रूप में मृतकों का श्राद्ध होता है। मृतकों के स्मारक, कवच, मकबरे संसारभर में देखे जाते हैं। पूर्वजों के नाम पर नगर, मुहल्ले, संस्थाएं, मकान, कुएं, तालाब, मंदिर, मीनार आदि बनाकर उनके नाम तथा यश को चिरस्थायी रखने का प्रयत्न किया जाता है। उनकी स्मृति में पर्वों एवं जयंतियों का आयोजन किया जाता है। यह अपने-अपने ढंग के श्राद्ध ही हैं।

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