विश्व सभ्यता में भारत के योगदान पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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वैदिक सभ्यता
प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है। इसका नामकरण हिन्दुओं के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे के क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। वैदिक हिन्दुओं का पर्यायवाची है, यह वेदों से निकले धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों का दूसरा नाम है।
इस अवधि के दो महान ग्रंथ रामायण और महाभारत थे।
बौद्ध युग
भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व 7 वीं और शुरूआती 6 वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्वपूर्ण गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य और वैशाली के लिच्छवी गणराज्य थे। गणराज्यों के अलावा राजतंत्रीय राज्य भी थे।
Explanation:
भारतीय विरासत और संस्कृति
भारतीय सभ्यता, संस्कृति का वर्तमान स्वरूप और इसका महत्त्व
26 Jun 2020 10 min read
टैग्स: सामान्य अध्ययन-I
भूमिका:
भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है।
संस्कृति शब्द का अर्थ:
संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है। अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि।
आज के समय में सभ्यता और संस्कृति को एक-दूसरे का पर्याय समझा जाने लगा है जिसके फलस्वरूप संस्कृति के संदर्भ में अनेक भ्रांतियाँ पैदा हो गई हैं। लेकिन वास्तव में संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग होती है।
सभ्यता का संबंध हमारे बाहरी जीवन के ढंग से होता है यथा- खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल आदि जबकि संस्कृति का संबंध हमारी सोच, चिंतन और विचारधारा से होता है।
संस्कृति का क्षेत्र सभ्यता से कहीं अधिक व्यापक और गहन होता है। सभ्यता का अनुकरण किया जा सकता है लेकिन संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता है ।
उपर्युक्त अंतर से स्पष्ट है कि दोनों के क्रियाकलाप अलग-अलग हैं और दोनों परस्पर जुड़े हुए भी हैं। सभ्यता में मनुष्य के राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय व दृश्य कला रूपों का प्रदर्शन होता है जो जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जबकि संस्कृति में कला, विज्ञान, संगीत, नृत्य और मानव जीवन की उच्चत्तर उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं। अतः यही कहा जा सकता है कि सभ्यता वह है जो हम बनाते हैं तथा संस्कृति वह है जो हम हैं।
भारतीय संस्कृति का प्राचीन स्वरूप:
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। यह माना जाता है कि भारतीय संस्कृति यूनान, रोम, मिस्र, सुमेर और चीन की संस्कृतियों के समान ही प्राचीन है। कई भारतीय विद्वान तो भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति मानते हैं।
वसुधैव कुटुंबकम:
भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक व्यवस्थित रूप हमें सर्वप्रथम वैदिक युग में प्राप्त होता है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ माने जाते हैं। प्रारंभ से ही भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, सशक्त एवं जीवंत रही हैं, जिसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति का अद्भुत समन्वय पाया जाता है।
भारतीय विचारक आदिकाल से ही संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानते रहे हैं इसका कारण उनका उदार दृष्टिकोण है।
हमारे विचारकों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रही है। ववस्तुतः शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है। इस कसौटी पर भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से उतरती है।
प्राचीन भारत में शारीरिक विकास के लिये व्यायाम, यम, नियम, प्राणायाम, आसन ब्रह्मचर्य आदि के द्वारा शरीर को पुष्ट किया जाता था । लोग दीर्घ जीवी होते थे।
आश्रम व्यवस्था:
आश्रम व्यवस्था का पालन करते हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र रहा है।
प्राचीन भारत के धर्म, दर्शन, शास्त्र, विद्या, कला, साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र इत्यादि में भारतीय संस्कृति के सच्चे स्वरुप को देखा जा सकता है।
मानव संस्कृति:
यह संस्कृति ऐसे सिद्धांतों पर आश्रित है जो प्राचीन होते हुए भी नये हैं। ये सिद्धांत किसी देश या जाति के लिये नहीं अपितु समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये हैं। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति को सच्चे अर्थ में मानव संस्कृति कहा जा सकता है।
मानवता के सिद्धांतों पर स्थित होने के कारण ही तमाम आघातों के बावजूद भी यह संस्कृति अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकी है।
यूनानी, पार्शियन, शक आदि विदेशी जातियों के हमले, मुगलों और अंग्रेजी साम्राज्यों के आघातों के बीच भी यह संस्कृति नष्ट नहीं हुई। अपितु प्राणशीलता के अपने स्वभावगत गुण के कारण और अधिक पुष्ट एवं समृद्ध हुई।
भारतीय संस्कृति का वर्तमान स्वरूप और महत्त्व:
भारतीय संस्कृति का नूतन आयाम ब्रिटिश साम्राज्य की नींव के साथ प्रारंभ हुआ। इस काल में सभ्यता ने संस्कृति को दबाने की चेष्टा की अतः संस्कृति का यथार्थ स्वरूप उभर नहीं सका।
इस युग में सामाजिक आचार-विचार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा। संयुक्त कुटुंब प्रथा के स्थान पर परिवारों का पृथक्करण होने लगा।
धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत ने धर्म को पीछे धकेल दिया। विज्ञान ने ज्ञान के अपेक्षित स्वरूप की अपेक्षा कर दी भौतिकवाद उभरकर सामने आया और भारतीयों का सांस्कृतिक दृष्टिकोण अपने मूल लक्ष्य से भटक गया।
आधुनिकतावाद की अवधारणा का समाज में आना आसान हो गया। वैश्वीकरण और आधुनिकरण के मध्य में गहरा संबंध है। जब भारतीय संस्कृति का स्वरूप आधुनिक हो गया तब निश्चित दिशा में होने वाले परिवर्तन भी दिखाई देने लगे।
बुद्धिवाद, विवेकीकरण और उपयोगितावाद आदि दर्शन