Hindi, asked by Jayhiwale, 10 months ago

विश्व शांति की मांग सर्वाधिक प्रासंगिक है इस तथ्य पर अपने विचार लिखो​

Answers

Answered by khusheeyadav1359
24

विश्व शांति सभी देशों और/या लोगों के बीच और उनके भीतर स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श है। विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक माध्यम है, जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिये इच्छा से सहयोग करते हैं, ताकि युद्ध को रोका जा सके। हालांकि कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विश्व शांति के लिए सभी व्यक्तियों के बीच सभी तरह की दुश्मनी के खात्मे के सन्दर्भ में किया जाता है।विश्व शांति सैद्धांतिक रूप से संभव है, कुछ का मानना है कि मानव प्रकृति स्वाभाविक तौर पर इसे रोकती है।यह विश्वास इस विचार से उपजा है कि मनुष्य प्राकृतिक रूप से हिंसक है या कुछ परिस्थितियों में तर्कसंगत कारक हिंसक कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे।

तथापि दूसरों का मानना है कि युद्ध मानव प्रकृति का एक सहज हिस्सा नहीं हैं और यह मिथक वास्तव में लोगों को विश्व शांति के लिए प्रेरित होने से रोकता है।

please mark my answer brainiest one!

Answered by sahiljawale2006
8

विश्वबंधुता अर्थात संपूर्ण विश्व के लोगों में एक - दूसरे के प्रति भाईचारे का भाव , चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति , धर्म अथवा देश का हो । विश्वबंधुता के स्थान पर आज राष्ट्रवाद की भावना अधिक बलवती हो चुकी है । परिणामानुसार संपूर्ण विश्व धीरे - धीरे विनाश की ओर बढ़ता जा रहा है । लोगों में इंसानियत से अधिक अपनी जाति , धर्म व देश के प्रति निष्ठा दिखाई दे रही है , जिसका सीधा व प्रतिकूल प्रभाव ' वसुधैव कुटुम्बकम् ' की भावना पर पड़ रहा है । सभी अपने जाति , धर्म व देश को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में लग गए हैं । आज एकदूसरे से बड़ा बनने की होड़ को खत्म कर प्रेम की राह पर चलने के लिए विश्व के सभी राष्ट्रों व नागरिकों को आगे आने की बहुत आवश्यकता है । प्रेम व भाईचारे को इसी भावना को जागृत कर हम विश्व के विनाश को रोक सकते हैं । अत : वर्तमान युग में विश्व शांति को माँग सर्वाधिक प्रासंगिक व अत्यधिक आवश्यक है ।

विश्वबंधुता अर्थात संपूर्ण विश्व के लोगों में एक - दूसरे के प्रति भाईचारे का भाव , चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति , धर्म अथवा देश का हो । विश्वबंधुता के स्थान पर आज राष्ट्रवाद की भावना अधिक बलवती हो चुकी है । परिणामानुसार संपूर्ण विश्व धीरे - धीरे विनाश की ओर बढ़ता जा रहा है । लोगों में इंसानियत से अधिक अपनी जाति , धर्म व देश के प्रति निष्ठा दिखाई दे रही है , जिसका सीधा व प्रतिकूल प्रभाव ' वसुधैव कुटुम्बकम् ' की भावना पर पड़ रहा है । सभी अपने जाति , धर्म व देश को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ में लग गए हैं । आज एकदूसरे से बड़ा बनने की होड़ को खत्म कर प्रेम की राह पर चलने के लिए विश्व के सभी राष्ट्रों व नागरिकों को आगे आने की बहुत आवश्यकता है । प्रेम व भाईचारे को इसी भावना को जागृत कर हम विश्व के विनाश को रोक सकते हैं । अत : वर्तमान युग में विश्व शांति को माँग सर्वाधिक प्रासंगिक व अत्यधिक आवश्यक है ।

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