विश्वबंधुता वर्तमान युग की मांग इस विषय पर निबंध
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मित्रस्य या चक्षुषा सर्वाणि भूताणि समीक्षन्ताम
मित्र स्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।
यजुर्वेद के इस मंत्र के अनुसार व्यक्ति द्वारा यह कामना की गई है कि संसार के सभी लोग मुझे मित्र की दृष्टि से देखे। मैं भी सभी को मित्र की दृष्टि से देखूँ। हम सब एक-दूसरे को मित्र की दृष्टि से ही देखें। सच तो यह है कि संसार को देखने की हमारी वैदिक सोच और दृष्टि यही रही है। व्यक्ति, समाज और देश भी इसी दृष्टि के अनुसार व्यवहार करता रहा है। इसलिए हम विश्व बंधुत्व में विश्वास करते हैं। हमारे जीवन दर्शन के चन्द आधारभूत सूत्रों में यह एक महवपूर्ण सूत्र रहा है।
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