Hindi, asked by Dharmendarchoudhary, 1 month ago

विश्वरूप दर्शन कर स्तब्ध हुए अर्जुन ने कहाँ, “हे विश्वेश्व हे विश्वरूप! मैं आपके शरीर में अनेकानेक हाथ, पेट, मुख तथा और देख रहा हूँ, जो सर्वत्र फैले हुए हैं और जिनका अन्त नहीं है। आप न अन्त दिखता है, न मध्य और न आदि।” (११.१६)​

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Answered by patidararjit
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