विश्वस्मिन् जगति करोमि कर्म, कर्मण्या भारतजनताऽहम्।।
भारतजनताऽहम्
अभिमानधन
विनयोपेता
कुलिशाद
कठिना,
कुसुमाद
सुकुमार
वसुंध
प्रेयः श्रेयः च चिनोम्युभयं, सुविवेका भारत
। प्रस्तुत कविता आधुनिक कविकुलशिरोमणि डॉ. रमाकान्त शु .
'भारतजनताऽहम्' से साभार उद्धृत है। इस कविता में कवि भारतीय ।
विविध कौशलों, विविध रुचियों आदि का उल्लेख करते हुए बताते हैं, १६ .
अभिमानधना विनयोपेता, शालीना भारतजस्ता
(कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि, सुकुमारा भात
निवसामि समस्ते संसारे, मन्ये च कुरण र
विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि, विश्वस्मिन् जगति सदा १
की क्या-क्या विशेषताएँ है।।
प्रेयः
विज्ञानधनाऽहं ज्ञानधना, साहित्यकला सङ्गीतपरा।
श्रेयः
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः, परिपूता भारतजनताऽहम्।3।
मम गीतैर्मुग्धं समं जगत्, मम नृत्यैर्मुग्ध समं जाए
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्, रसभरिता भारतजनताइन
उत्सवप्रियाऽहं श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेऽतिथिदेवा, भारतजनताऽहम्।5
मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति, नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसार, पश्यन्ती भारतजनताऽहम्।6।
चि
आ
Answers
Explanation:
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्”।।इति।।
श्लोक के उत्तरार्ध पर यदि गौर करें तो दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली योग की परिभाषा एवं दूसरी योग हेतु प्रभु का स्पष्ट निर्देश। उनका उपदेश है कि ‘योगाय’ अर्थात् योग के लिए अथवा योग में, ‘युज्यस्व’ अर्थात् लग जाओ। कहने का तात्पर्य है कि ‘योग में प्रवृत्त हो जाओ’ यानि कि ‘योग करो’। अब प्रश्न यह है कि क्यूँ करें योग? इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने श्लोक के पूर्वार्ध में दिया है कि बुद्धिमान व्यक्ति अर्थात् योगी, वर्तमान में ही अथवा इस संसार में ही ‘सुकृत’ एवं ‘दुष्कृत’ अर्थात् पुण्य एवं पाप से मुक्त हो जाता है। योग के इस हेतु को स्पष्टतया जानने के लिये, सबसे पहले यह समझना परमावश्यक है कि ‘योग क्या है’? या ‘योग किसे कहते हैं’?
Answer:
gofufuffufiffigitityououogitigigiyk