वा शमशेर बहादुर सिंह जी का
(ii) भावपक्ष एवं कला पक्ष
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वा शमशेर बहादुर सिंह जी का
(ii) भावपक्ष एवं कला पक्ष
- किसी साहित्यिक कृति का वह पहलू जिसमें उसके सार का वर्णन या विस्तार से वर्णन किया गया हो। जिसमें काव्यात्मक भाव, विचार और विचार प्रधान होते हैं। शब्दों का चुनाव, भाषा का प्रवाह, तुकबंदी, अलंकरण, तर्क, कल्पना, संवेदनशीलता, भाव और अर्थ आदि कलापक्ष में आते हैं।
- गद्य और पद्य दोनों का अपना पक्ष है। गद्य में विचार की शक्ति प्रधान होती है, जिसे कालापक्ष द्वारा बढ़ाया जाता है।
- शमशेर के अनुभव इतने विविध और जटिल थे कि उन्हें किसी पारंपरिक ढांचे में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए, वे अपना शिल्प विकसित करते हैं।
- उनकी कविताओं का शिल्प, जिसे वे एक कुशल शिल्पकार की तरह प्रयोग करते हैं, अद्वितीय है। इसके साथ ही यह कविता में शब्दों की मर्यादा पर बल देता है। शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911 – 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी काव्य के सभी में एक बहुत ही खास कवि के रूप में पहचाने जाते हैं।
- हिंदी कविता के निरंतर प्रयोगकर्ता, अलंकार को काव्यभाषा के रूप में प्रयोग करने वाले, प्रेम और सौन्दर्य के कवि तथा अनुपम संवेदनात्मक अलंकार के रचयिता शमशेर जीवन भर प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रहे।
- दूसरे सप्तक से प्रारम्भ करके 'छुका भी हूँ नहीं मैं' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त शमशेर ने कविता के अतिरिक्त निबंध, कहानियाँ और डायरियाँ भी लिखीं और अनुवाद कार्य के अतिरिक्त एक हिन्दी-उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया। शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911 – 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी काव्य के सभी में एक बहुत ही खास कवि के रूप में पहचाने जाते हैं।
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