वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये मन अभिमान न आणे रे ॥
सकळ लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे के नी रे ।।
वाच काछ मन निश्चळ राखे, धन धन जननी तेनी रे ॥
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे ।
जिह्वा थकी असत्य न बोले, परधन नव झाले हाथ रे॥
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
| रामनाम शुं ताळी रे लागी, सकळ तीरथ तेना तनमा रे॥
वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयो तेनुं दरसन करतां, कुळ एकोतेर तार्या रे॥
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