वैष्णव की फिसलन निबंध की अंतर्वसतु का विश्लेषण अपने शब्दों में कीजिए?
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वैष्णव की फिसलन' हरिशंकर परसाई जी का व्यंग संग्रह है। इस किताब को मैंने इसी साल दूसरी बार पढ़ा है। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि हर हिंदी भाषी को हरिशंकर परसाई जी को जरूर पढना चाहिए। हमारे समाज को देखकर उसकी कुरीतियों के ऊपर वे जैसा करारा प्रहार करते हैं ऐसा मैंने अभी तक और कहीं नहीं पढ़ा। प्रस्तुत संग्रह में उनके १९ लेखों को संकलित किया गया है। परसाई जी बताते हैं कि इनमे से पहले १६ तो मूल रूप से व्यंग ही हैं और आखिरी के तीन निबंध है जो उन्होंने उस वक्त लिखे थे। जब भी मैं किसी संकलन को पढता हूँ तो मेरी कोशिश रहती है कि हर रचना पर अलग से विचार व्यक्त करूँ। इधर भी ऐसे ही किया है। इससे पोस्ट तो लम्बी होती है लेकिन मुझे लगता है कि संकलन के विषय में इससे ज्यादा अच्छे तरीके से पता चल पायेगा। पुस्तक में निम्न रचनायें हैं:
1) वैष्णव की फिसलन
पहला वाक्य :
वैष्णव करोड़पति है।
वैष्णव परेशान है। जब उसके पास दो नंबर का पैसा ज्यादा हो जाता है तो वो एक होटल खोलने की सोचता है। लेकिन होटल खोलना और उससे मुनाफा कमाना दो अलग बातें हैं। वैष्णव को जल्द ही पता चलता है जिस मांस, मच्छी, मदिरा से वो कोसों दूर भागता है उसके बिना होटल नहीं चल पायेगा। वो पशोपेश में है। क्या करे और अपने ईश्वर की शरण में जाता है। आगे क्या होता है वो तो इस व्यंग में ही आप पढियेगा।
 'वैष्णव की फिसलन' धार्मिक पाखंड को दर्शाता एक व्यंग है। धर्म के नाम पर अगर किसी चीज की मनाही हो लेकिन उसे करना जरूरी हो तो इन्सान कोई न कोई तरीका ढूँढ लेता है। वो अपने आप को समझाने के ऐसे ऐसे उपाय खोज लेता है कि उन चीजों में भी धर्म और ईश्वर ढूँढ लेता है। ऐसा नही है कि ये केवल हिन्दू धर्म में है या वैष्णव ही ऐसे होते हैं। ये तो उदाहरण है वरना हर धर्म में ऐसे लोग मिल जाते हैं। पंडित, पादरी, मौलाना, भिक्षु और ऐसे ही धार्मिक गद्दियों में बैठे कई लोग इस श्रेणी में आते हैं।
धार्मिक पाखंड को दर्शाता उम्दा व्यंग।
1) वैष्णव की फिसलन
पहला वाक्य :
वैष्णव करोड़पति है।
वैष्णव परेशान है। जब उसके पास दो नंबर का पैसा ज्यादा हो जाता है तो वो एक होटल खोलने की सोचता है। लेकिन होटल खोलना और उससे मुनाफा कमाना दो अलग बातें हैं। वैष्णव को जल्द ही पता चलता है जिस मांस, मच्छी, मदिरा से वो कोसों दूर भागता है उसके बिना होटल नहीं चल पायेगा। वो पशोपेश में है। क्या करे और अपने ईश्वर की शरण में जाता है। आगे क्या होता है वो तो इस व्यंग में ही आप पढियेगा।
 'वैष्णव की फिसलन' धार्मिक पाखंड को दर्शाता एक व्यंग है। धर्म के नाम पर अगर किसी चीज की मनाही हो लेकिन उसे करना जरूरी हो तो इन्सान कोई न कोई तरीका ढूँढ लेता है। वो अपने आप को समझाने के ऐसे ऐसे उपाय खोज लेता है कि उन चीजों में भी धर्म और ईश्वर ढूँढ लेता है। ऐसा नही है कि ये केवल हिन्दू धर्म में है या वैष्णव ही ऐसे होते हैं। ये तो उदाहरण है वरना हर धर्म में ऐसे लोग मिल जाते हैं। पंडित, पादरी, मौलाना, भिक्षु और ऐसे ही धार्मिक गद्दियों में बैठे कई लोग इस श्रेणी में आते हैं।
धार्मिक पाखंड को दर्शाता उम्दा व्यंग।
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