विषुवत रेखा का वासी हाँफ-हॉफ कर क्यों
जीता है? (2)
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अतुलनीय जिनके प्रताप का
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर
घूम-घूमकर देख चुका है
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर
देख चुके है जिनका वैभव
ये नभ के अनंत तारागण
अगणित बार सुन चुका है नभ
जिनकी विजय-घोष रण-गर्जन।
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विषुवत रेखा का वासी जो,
जीता है नित हांफ हांफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ भूमि पर।।
ध्रुव वासी जो हिम् में तम में
जी लेता है कांप कांप कर
वह भी अपनी मातृभूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर।।
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